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जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य सरल रास्थानी भाषा में निर्मित प्रस्तुत काव्य के कुछ उदाहरण देखिए :
तब देव उपाव करावइ । मिल उपरि कमल ति बावई । ते बावइ कमल तिणि आगइ। बलिभद्र कहइ किम लागई ।। पाथर ऊपर पोयणी, किम ऊगसी गमार । जो ये मुआं जीवसी, तउ ऊगसी कुमार ॥ इम वचन सुणी मंन जाणी । बेलु पोल्हइ घाणी। तूं मुरख जोइ नवि मासी । बेलु किम पील्हासी । तो एस ओ मडउ ओ जीवइ । तो तेल बलइ लव दीवइ ।
समझावत तडको बोलइ । बलिभद्र पड्यो इम डोलई॥ कवि ने अपनी इस कृति में दोहा और सखी छंदों का प्रयोग किया है। इसकी हस्तलिखित प्रति अभय जैन ग्रंथालय, बीकानेर में संग्रहीत एक गुटके में उपलब्ध है ।19 (६) नेमि ब्याह
___कविवर विनोदीलाल की यह एक छोटी-सी सरस रचना है। जिसमें नेमिनाथ की बरात का चित्रण करते हुए कवि ने पशुओं की करुण पुकार को सुनकर नेमि के हृदय में वैराग्य भाव को जागृत कराया है। इसकी कथा-वस्तु पूर्व की हिंदी कृति नेमिचंद्रिका की तरह है।
प्रस्तुत कृति में नेमिनाथ के दिल में दुःखी राष्ट्र के दुःख को दूर करने की प्रबल आकांक्षा जागृत होती है। यद्यपि उनके मन में कुछ क्षणों तक सांसारिक प्रलोभनों से युद्ध होता है, परंतु जब वे तटस्थ होकर राष्ट्र की परिस्थिति का चिंतन करते हैं, उस समय उनका मोह समाप्त हो जाता है। भौतिक वैभव को त्याग कर मानव-कल्याण के हेतु वे तपाराधना के लिए जाते हैं। उनका यह कार्य जीवन से पलायन नहीं है, अपितु यथार्थ में यह ऐसा पुरुषार्थ है जिसके लिए आत्मबल की आवश्यकता रहती है। इस प्रकार दृढ़ मनोबल साधारण व्यक्ति नहीं कर पाता। जिसके अंतःकरण में मानव-कल्याण की भावना सुलग रही हो, जिसकी आत्मा में अपूर्व बल होगा वही व्यक्ति इस प्रकार के अद्वितीय कार्यों को संपन्न कर सकेगा।
१६. बलभद्र बेलि (हस्त० प्रति) अभय जैन ग्रंथालय, बीकानेर, प० संख्या १४ से १७ २०. नेमिब्याह : कवि विनोदीलाल-हिंदी जैन साहित्य परिशीलन : ले० डा०
नेमिचंद्र शास्त्री, पृ० २०१ से २२२ ।
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