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________________ २२१ हिन्दी जैन श्रीकृष्ण मुक्तक साहित्य तजि मोहु मान मद रोसा अतिसहिया विषम परिवासा। तह अठ्ठ करम बलुवायो तिमि केवल ग्यानु पायो ।।16 कृति की हस्तलिखित प्रतियां दिगंबर जैन मंदिर बड़ा तेरहपंथियों का जयपुर, दिगंबर जैन मंदिर बधीचंदजी जयपुर, भट्टारक भण्डार अजमेर के शास्त्र भण्डारों में हैं। काव्य की दृष्टि से सरल एवं सरस वर्णन है व अनुप्रास, रूपक आदि अलंकारों से युक्त है यह एक कथात्मक गीतिकाव्य है । (५) बलभद्र बेलि इसके रचयिता का नाम सालिग है। कृति में रचना काल का कोई उल्लेख नहीं है किंतु इसकी प्रतिलिपि संवत् १६६६ की मिलती है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि इसकी रचना इसके पूर्व ही हुई होगी। डा० नरेद्र भानावत के मतानुसार कवि सालिग १६वीं शताब्दी के कवि हैं।18 प्रस्तुत कृति के २८ छंदों में द्वारका-विनाश, कृष्ण का परमधाम गमन और उनके अग्रज बलभद्र के अंतिम समय की घटनाओं का विवेचन है। कथावस्तु द्वैपायन ऋषि के शाप से द्वारका नगरी का अग्नि में विनाश होता है, कृष्ण व बलराम वहां से निकल कर कौशांबी वन में पहुंचते हैं, कृष्ण को प्यास लगी है यह देख कर बलभद्र पानी लाने गये । ज्योंहि श्रीकृष्ण एक वक्ष की छाया में विश्राम करने लगे त्योंहि जरत्कूमार ने हरिण के धोखे से बाण चलाया जो उन्हें लगा और श्रीकृष्ण का देहावसान हो गया। बलभद्र पानी लेकर लौटे तब कृष्ण को अचेत अवस्था में पाकर उनके मृत शरीर को कंधे पर उठाकर ६ मास पर्यंत घूमते रहे। अंत में देवताओं ने उन्हें प्रबोध देने के लिए एक नाटक रचा । उसमें यह बतलाया गया कि घाणी से रेत को पीस कर तेल का निकलवाया गया तथा पत्थर पर पुष्प को खिलवाया गया। इसके फलस्वरूप बलभद्र का मोह दूर हुआ। कृष्ण के मत शरीर का दाह संस्कार कर, अरिष्टनेमि की सेवा में पहुंचकर, प्रव्रज्या ग्रहण कर वे ५ वें देवलोक में पुनः उत्पन्न हुए। १६. राजस्थानी बेलि साहित्य-डा० नरेंद्र भानावत पृ० २४४ १७. बलभद्र बेलि-रच० सालिग। समकित विण काज न सिझइ । सालिग कहइ सुधउ कीजइ ॥२८॥ १८. राजस्थानी बेलि साहित्य -- डा० नरेंद्र भानावत lain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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