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जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य कृष्ण चरित्र,
नेमीश्वर की बेलि, पंचेन्द्रिय बेलि,
चिन्तामणि जयमाल, सीमन्धर स्तवन,
पार्श्व सकुन सत्तावीसी १५५० के आसपास प्रस्तुत कृति की रचना का अनुमान कवि की अन्य कृति पंचेन्द्रिय बेली के आधार से किया जा सकता है 14 किंतु कवि ने कृति में इस बात का उल्लेख नहीं किया है।
जैन परंपरागत नेमि-राजुल के कथानक का वर्णन करते हुए कवि ने वसंत आगमन के साथ ही द्वारकावासियों का वन क्रीडार्थ वन में गमन, अनासक्त नेमिकुमार को कृष्ण की रानियों द्वारा आसक्त बनाने की चेष्टा, नेमिकुमार द्वारा कृष्ण की आयुधशाला में पहुंचकर धनुष चढ़ाना व पांचजन्य शंख बजाना, उग्रसेन की कन्या राजीमती से नेमिकुमार का विवाह, पशुओं की करुण पुकार श्रवण कर नेमकूमार का लौट जाना, राजीमती का व नेमि का विरक्त होना, आत्मसाधना कर सिद्ध गति प्राप्त करना आदि वर्णनों के द्वारा कवि ने काव्य कला का सुंदर परिचय प्रदान किया है। भाषा सरल राजस्थानी है। कुछ उदाहरण देखिये
सुरनर जादव मिलि चल्या व्याहण नेमिकुमार । पसु दीठा बाड़ो भर्यो बांध्या सुसर दुवारि ॥ हरण रीछ सूवर प्रमुख, पुकारहि मुह ऊचाहि । नेमिकुमार रथ राखि करि, वूग्यो सारथ वाहि ।। रे सारथ ए आजि, पसु बंधिया किणि काजि। तिणि जंप्या किसनि अणाया, पसु जाति जके मन भाया। पोषिवा भगति बराती, पसु वद्धिवा सहि परमाती।
तब नेमिकुमार रथ छोड़ि, पसु मुकलाया वदु तोडि ॥15 दोहा तथा सखी छंद में निर्मित यह कृति काव्य गुणों से युक्त है। सखी छंद वह कहलाता है जहां ४ चरण तथा प्रत्येक चरण में १४ मात्राओं का क्रम हो । प्रथम द्वितीय चरण तथा तृतीय चतुर्थ चरणों की तुक मिलती है, जैसे
१४. राजस्थानी बेलि साहित्य-डा० नरेंद्र भानावत पृ० २४४ १५. वही
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