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________________ हिन्दी जैन श्रीकृष्ण मुक्तक साहित्य २२६ प्रभु अरिष्टनेमि के मुखारविंद से द्वारका की भवितव्यता जानकर कृष्ण बलराम दोनों विचारमग्न हो गये। यथासमय द्वारका का विनाश हुआ। दोनों जंगल में पहुंचे । बलराम पानी लेने गये और इधर जरत्कुमार का बाण कृष्ण को लगा । बलराम कृष्ण के विलाप में रुदन करने लगे। अंत में वे प्रव्रज्या स्वीकार करते हैं व निर्वाण को उपलब्ध करते हैं। कृति की भाषा राजस्थानी से प्रभावित हिंदी है । प्रस्तुत कृति में १८६ पद ढाल, दूहा एवं चौपाई में हैं। द्वारिका का वर्णन करते हुए कवि ने उसे १२ योजन बिस्तारवाली व इंद्रपुरी के समान बतलाया है। इस नगरी में ऊंची-ऊंची अट्टालिकाएं थीं जिनमें अनेक धनपति व वीरवर निवास करते थे। यथा नगर द्वारिका देश मझार, जाणे इंद्रपुरी अवतार । बार जोयण ते फिरतुं वसि, ते देखि जनमन उलसि ॥११॥ नव खण तेर खणा प्रासाद, इह श्रेणि सम लागु वाद।। कोटीधन तिहां रहीइ धणा, रत्न हेम हीरे नहीं मणा ।१२। याचक जननि देइ दान, न होयउ हरण नहीं अभिमान । सूर सुभट एक दीसि घणा, सज्जन लोक नहीं दुर्जणा ।१३।11 द्वारिका का विनाश व कृष्ण के परभव-गमन की घटना को नेमिनाथ की भविष्यवाणी में लिखते हए कवि ने लिखा है द्वीपायन मुनिवर जे सार, ते करसि नगरी संघार । मद्यभांड जे नाभि कहीं, तेह थकी वली जलहि सही ॥६२॥ पारलोक सवि जलसि जिसि, व बन्धव निकससु तिसि। तह्य सहोदर जराकुमार, तेहनि हाथि मारि मोरार ॥६२॥12 बलराम तथा श्रीकृष्ण के सहोदर प्रेम भावना का आदर्श इसमें वणित हुआ है। (४) नेमिश्वर की बेलि प्रस्तुत कृति के कृतिकार ठाकुरसी १६वीं शताब्दी विक्रम में उत्पन्न हए थे। पिता घेल्ह स्वयं कवि थे। ये दिगंबर जैन कवि थे। इनकी निम्न रचनाएं हैं११. राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व : डा कस्तुरचंद कासलीवाल १२. वही, १३. नेमीश्वर बेलि, घेल्ह सुतन ठाकुरसी। __ कवि घेल्ह सुतन ठाकुरसी, कियो नेमि सुरति मति सरसी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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