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हिन्दी जैन श्रीकृष्ण मुक्तक साहित्य
२२७ रमति करता रंगि, चडइ गोवर्धन शूगि, गुजरि गोवालणिएं गाइं गोपी सिउमिलोए, कालिनाग जल अंतरालि कोमल कमलिनि नाल, नाखिउ नारायणिए रमलि पराजणीए, कंसमल्ला खाएइ वीर पहुता साहस धीर, वेहुवाइ वाकरीए बलवंता बाहिं करीए, बलभद्र वलिआ सार मारिउ मौष्टिक मार, कृष्णि बल पूरीउए चाणूर चूरिउ ए, मौष्टिक चाणूर च्यूरिए देखीय ऊठिउ कंस,
नव बलवंत नारायणि तास कीधउ विध्वंस । इस प्रकार भाव, भाषा, छंद, अलंकार आदि सभी दृष्टियों से भी प्रस्तुत कृति सुंदर है। (२) नेमिनाथ फागु-जयशेखरसूरि
____ कृतिकार जयशेखर का समय १५वीं शताब्दी विक्रम का पूर्वार्द्ध है। इन्होंने श्वेतांबर जैन संप्रदाय के मेरुतुंगसूरि के पास संवत् १४१८ (ई० सन् १३६१) में जैन दीक्षा धारण की थी। इनके द्वारा रचित निम्न कृतियां प्राप्त हैं
त्रिभुवन दीपक प्रबंध, उपदेश-चिंतामणि, धम्मिल-चरित्र, प्रबोध-चिंतामणि, नेमिनाथ फागु।
नेमिनाथ फागु की हस्तलिखित प्रति १६वीं शताब्दी विक्रम की उपलब्ध है। कवि की जैन दीक्षा का आधार मानकर रचनाकाल १४वीं शताब्दी ई० का अंतिम समय माना जा सकता है। कथानक
द्वारका नगरी में कृष्ण वासुदेव राज्य करते थे जो अपनी वीरता व शता के लिए जगप्रसिद्ध थे। कृष्ण ने चाणूर, कंस और जरासंध को नष्ट किया था। कृष्ण के राज्य में राजा समुद्रविजय की रानी शिवादेवी के पत्र
८. हिंदी की आदि और मध्यकालीन फागु कृतियां : संपादक डा० गोविंद रजनीश.
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