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________________ २२६ (1) रंगसागरनेमि फागु प्रस्तुत कृति के रचयिता सोमसुंदरसूरि हैं । काव्य के अंत में नामोल्लेख करते हुए कवि ने लिखा है भूया उज्ज्वल सोमसुंदर यशश्री संघ भद्रकर । सुप्रसिद्ध जैनाचार्य सोमसुंदरसूरि ने प्रस्तुत कृति की रचना ई० सन् १४२६ (सं० १४८३ ) के लगभग की थी । प्रस्तुत कृति के दो नाम कवि ने बतलाए हैं । फाग के प्रारंभ में रंगसागर " लिखा है और पुष्पिका में "नेमिनाथ नवरस "" लिखा है । कवि १०६ छंदों में परंपरागत नेमिनाथ चरित का वर्णन करते हुए ने ३ खंडों में कृति को विभाजित किया है । जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य फागु, रासक, आंदोल आदि छंदों के प्रयोग के साथ अलंकारिक वर्णन कर कवि ने रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास, यमक आदि के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। प्रस्तुत कृति की भाषा राजस्थानी से प्रभावित आदिकालीन हिंदी है। प्रथम खंड में - जन्म वर्णन | द्वितीय खंड में - विवाह वर्णन । तृतीय खंड में - विरक्त होकर गिरनार पर तपाराधना कर कैवल्य की उपलब्धि का विवेचन है । कृष्ण के शौर्य वर्णन में बाल जीवन की साहसिक घटनाओं का वर्णन इस प्रकार देखा जा सकता है? ७. .64 - २. रंगसागर - नेमिफागुः सोमसुंदरसूरि । हिंदी की आदि और मध्यकालीन कृतियां, पृ० १३६- १४८, सं. डा. गोविंद रजनीश । ३. तीसरा खण्ड ३७ अवतरिआ इणि अवसरि मथुरा पुरिस रयण नव नेह रे । सुख लालित लीला प्रीति अति बलदेव वासुदेव बेहु रे । वसुदेव रोहिणी दिवकी नंदन चंदन अंजन वानरे, वृंदावन यमुना जलि निरमलि रमति सांइगांइ गान रे । ४. वही, फाग परिचय पृ० १३४ ५. स्मेरीकारं रंगसागरमहा फागे करिष्ये नवम् - प्रथम खंड -२ ६. इति श्री नेमिनाथस्य नवरसाभिधानं भविकजनरंजन फागं । हिंदी की आदि और मध्यकालीन फागु कृतियां: सं० डा० गोविंद रजनीशः रंगसागर-नेमिफागु खंड प्रथम ३२ से ३६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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