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हिन्दी जैन श्रीकृष्ण रास, पुराण-साहित्य और अन्य
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भाषा:
पंच पांडव चरित रास में जिस भाषा का प्रयोग हुआ है वह अविकसित हिंदी है। इस तथ्य का प्रमाण इस बात से भी मिलता है कि प्रयुक्त भाषा में प्राचीन राजस्थानी एवं गुजराती शब्दों का बाहुल्य है । संस्कृत के तत्सम शब्द भी अधिक हैं। हिंदी के शास्त्रीय रूप के विकास क्रम में इस रचना का महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। छंद-अलंकार :
प्रस्तुत कृति में कवि द्वारा रसानुकूल अनेक छंदों का प्रयोग किया गया है । चौपाई, त्रिपादी, रोला, दोहा-चौपाई, सोरठा, आदि छंदों का प्रयोग प्रमुखता से किया है।
रचना में अलंकारों का प्रयोग स्वाभविक रूप में हुआ है। कहीं भी इस दिशा में कवि का कोई पूर्वाग्रह दृष्टिगत नहीं होता । अनुप्रासों की छटा विशेषतः दृष्टव्य रही है और अनुप्रास प्रयोग से युद्ध वर्णन अधिक सजीव हो उठे हैं । अलंकारों के अतिरिक्त अनेक स्थलों पर कवि द्वारा सूक्तियों का प्रयोग भी हुआ है जिसने सारी अभिव्यक्ति को ही प्राणवान कर दिया है। निष्कर्ष एवं तथ्य :
इस अध्याय में मैंने जो अनुशीलन किया उसका अध्येतव्य विषय "हिंदो जैन श्रीकृष्ण रास और पुराण तथा अन्य साहित्य"था। इस अनुशीलन में "हरिवंशपुराण", उत्तरपुराण, नेमिनाथ रास, प्रद्युम्नरास, नेमीश्वररास, गजसुकुमाल रास, पंच पांडव चरित रास जैसी रचनाएं थीं जिनका मैंने साहित्यिक अध्ययन प्रस्तुत किया। (१) इसमें दो रचनाओं को छोड़कर अन्य रचनाएं श्रीकृष्ण के जैन
परंपरा वाले चरित्र को ही प्रस्तुत करती हैं। (२) प्रधुम्नरास और गजसुकुमाल रास ये दो अवश्य ऐसी स्वतंत्र
कृतियां हैं जो इस अध्ययन में महत्वपूर्ण हैं। वैसे प्रद्युम्नचरित तो इसके पूर्व भी मेरे अध्ययन का विषय पूर्व अध्यायों में बन चुका है। पर, इसमें जो राजस्थानी से प्रभावित आदिकालीन हिंदी भाषा में ये तो रचनाएं मेरे अध्ययन में आयीं वे विशेष महत्वपूर्ण हैं। इनमें भी गजसुकुमाल रास तो और भी विशेष महत्वपूर्ण है।
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