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________________ २२० जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य अवस्थाओं के साथ-साथ अर्थ प्रकृतियों एवं संधियों का भी सुंदर संयोजन इस कथानक में दिखाई देता है। चरित्र-चित्रण : सामूहिक रूप से पांडव बंधु इस कथा-काव्य के नायक हैं। इनके शौर्य, शक्ति, विक्रम और साहस का कवि द्वारा विशद वर्णन किया गया है। पांडवों में भीम सर्वाधिक बलवान है और अर्जुन सर्वाधिक कुशल । अखाड़े के प्रदर्शनों में भी कौरव पांडवों में अर्जन ही सर्वोपरि लगता है। उसके कार्यों से उसकी धोरता, वीरता, चपलता, कुशल धनुर्धारिता आदि गुण प्रकट हो जाते हैं। कवि ने उसे "लोहपुरुष' की जो संज्ञा दी है उससे भी उसका चारित्रिक वैशिष्ट्य प्रकट होता है । पांडव सामर्थ्यवान् और साहसी हैं उनके विषय में कवि का कथन है जां महिमण्डल ऊगिउ सूरु, जां वण पहुतउ पंडव वीरू ।। अर्थात् पृथ्वीतल पर जहां जहां सूर्योदय होता है वहां पांडव पहुंच जाने की क्षमता रखते हैं । भीम के अपार बल की कहीं समता नहीं है। तरुवर मोडतु चलिउ भीम, देव तणूं बलू बलीउ ईम।। अर्थात् भीम इतना बलबान है कि वह चलते ही विशाल वृक्षों को तरोड़ता, मरोड़ता चलता है। पांडवों के अतिरिक्त भी कर्ण, भीष्म, द्रौपदी, कुंती, दुर्योधन, श्रीकृष्ण, विदुर, धृतराष्ट्र आदि अन्य अनेक पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है। "धीरू वीरू, मति अगलउं करण, पढ़ई तिणि ठाह" कह कर कवि ने कर्ण की धीरता वीरता और बुद्धिमत्ता का चित्रण एक ही पंक्ति में बड़े कौशल के साथ कर दिया है। रस-योजना : - कृति के अन्त में पांडवों द्वारा दीक्षा ग्रहण का वृत्तांत आया है, तथापि इस काव्य में शांत रस का प्राधान्य समझना भ्रांति होगी। समग्र काव्य कौरव पांडव संघर्ष से भरा है और इस कारण वीर रस ही प्रमुख स्थान ग्रहण कर पाया है। इसके अतिरिक्त शृंगार, करुण, रौद्र, बीभत्स आदि रस भो विभिन्न प्रसंगों में आए हैं । ७०. हिंदी के अज्ञात रास काव्य, मंगल प्रकाशन, जयपुर । ७१. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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