________________
२१८
जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य श्रीकृष्ण वृत्तांत की दृष्टि से रास काव्य पर्याप्त महत्व रखता है। इसमें श्रीकृष्ण संबंधी निम्नलिखित प्रसंग प्रमुखता के साथ वर्णित हुए हैं
-द्रौपदी स्वयंवर में उपस्थित होना, -वनवास अवधि के पश्चात् पांडवों की ओर से कौरवों के पास
जाकर शांति-वार्ता करना, -~-महाभारत युद्ध में भाग लेना, और -विजय के पश्चात् पांडवों को हस्तिनापुर राज्य का स्वामी बनाना
आदि। कथानक एवं कथानक संरचना :
__ प्रस्तुत प्रबंध काव्य में कथानक तीव्र गति से आगे बढ़ता चला गया है, न तो कहीं परावर्तन को स्थिति दिखायी देती है और न हो किसी प्रकार का शैथिल्य । प्रबंध काव्यों की एक निश्चित परंपरानुसार आरंभ में मंगलाचरण का निर्वाह पाया जाता है जिसके अंतर्गत नेमिजिनेंद्र एवं सरस्वती की वंदना की गयी है। इसके पश्चात् ही मूल कथा का प्रारंभ होता है। कथानक की रूपरेखा को बिंदुओं के रूप में यहां पर प्रस्तुत किया जाता है।
-राजा शांतनु और गंगा का प्रेम वर्णन, - शांतनु की अहेरी प्रकृति के कारण गंगा का रुष्ट होकर चले
जाना, -धीवर बाला सत्यवती पर शांतनु का मुग्ध हो जाना। -सत्यवती के पुत्रों का वर्णन । -कौरव-पांडव वर्णन । —द्रौपदी स्वयंवर। --मत्स्यवेध में अर्जुन विजय और अर्जुन द्वारा द्रौपदी की प्राप्ति । - कौरवों के साथ जए में पांडवों की पराजय और १२ वर्ष का
वनवास। ----वनवास में भीम द्वारा राक्षसों का वध व हिडिंबा से विवाह । -पांडवों द्वारा दुर्योधन की विद्याधरों से रक्षा। -पांडवों के पक्ष में राज्य की पुनर्घाप्ति के लिए श्रीकृष्ण के सचेष्टता के प्रयत्न और पांडवों की ओर से उसके द्वारा कौरवों के साथ शांति वार्ता।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org