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________________ हिन्दी जैन श्रीकृष्ण रास, पुराण-साहित्य और अन्य २१७ उमड़ पड़ता है । उसकी यह कामना बलवती हो जाती है कि पुत्र की बाललीलाओं का सुख उसे भी मिले, जो उसे कभी सुलभ नहीं हो पाया। वह उन मुनिजनों की माता के भाग्य को सराहती है। अपने अभाव की स्मृति से उसके आतप्त हृदय में एक हूक उठती है जिसकी प्रतिध्वनि कृति में सुंदरता के साथ सजाई गयी है। कालांतर में गजसुकूमाल को पा कर देवकी निहाल हो जाती है। वह अपने पुत्र को प्राणों से भी अधिक प्यार करती है। असीम स्नेह के साथ वह उसका पालन-पोषण करती है। इन स्थलों पर भी वात्सल्य रस पूर्ण प्रभावशाली रूप में आया है। 'भाषा: "गजसुकुमाल रास" प्रारंभिक हिंदी की रचना है। डा० हरिवंश लाल कोछड प्रभति विद्वज्जन इसे अपभ्रंश की रचना भी मानते हैं, किंतु अपभ्रंश की अपेक्षा यह हिंदी के प्रारंभिक रूप से अधिक निकटता रखती है। कृति से इसके उस रचनाकाल का परिचय झलकता है जब अपभ्रंश और अन्य लोकभाषाओं के मध्य का काल था। इस संधिकाल में हिंदी का प्रारंभिक स्वरूप हो प्रचलित था। इसकी भाषा १३वीं शताब्दी ईसवी की भाषा होने से उस समय के भाषा-रूप की जानकारी उपलब्ध हो जाती है जिसे हम हिंदी भाषा का आदिकालिक रूप कह सकते हैं। (८) पंच पाण्डव चरित रास : पंच पांडव चरित रास एक प्रकाशित रचना है। इसके कर्ता शालिभद्र सूरि हैं । स्वयं कृति के अन्तः साक्ष्य के आधार पर इसका रचनाकाल वि० सं० १४१० है। श्रीकृष्ण-वृत्तांत : शोर्षक से ही विदित हो जाता है कि प्रस्तुत कृति में पांडवों का चरित वर्णित है और पांडवों के अनेक प्रमुख प्रसंगों में उनका संबंध श्रीकृष्ण से रहा है । अतः रचना में श्रीकृष्ण के वृत्तांत को प्रचुर और प्रमुख स्थान मिलना स्वाभाविक ही है। "पंच पांडव चरित रास" में श्रीकृष्ण के लिए 'देव' 'प्रभु' जैसे संबोधन प्रयुक्त हुए हैं। स्पष्ट है कि उन्हें इस ग्रंथ में प्रभुत्वपूर्णऔर महत्तायुक्त स्थान प्राप्त हुआ है। ६०. पंच पांडव चरित रास हिंदी के अज्ञात रासकाव्य-मंगल प्रकाशन, जयपुर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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