SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिन्दी जैन श्रीकृष्ण रास, पुराण- साहित्य और अन्य २१५. स्थल पर भी ढीला नहीं हो पाया । अब भी नायक दीक्षा ग्रहण करने को कटिबद्ध है । वह तुरंत ही भगवान की शरण में आता है और दीक्षा ग्रहण कर मोक्ष-प्राप्ति का मार्ग जानने की उत्सुकता व्यक्त करता है । भगवान ऐसे मार्ग की ओर इंगित भी करते हैं । सारी बाधाओं की यहां इतिश्री हो जाती है । फलप्राप्ति की आशा बनने लगती है । यहीं प्राप्त्याशा की अवस्था है । मार्ग पाकर मुनि गजसुकुमाल उस पर गतिशील हो जाते हैं और श्मशान भूमि में ध्यान-साधना करने लगते हैं और फल तो अभी दूर हैं, किंतु अब कथानक के उतार-चढाव की स्थिति नहीं है । सोमिल द्वारा दिए गये भयंकर परिषह को भी क्षमा भावना के साथ मुनि गजसुकुमाल ने सहन कर लिया । यहां नियताप्ति की अवस्था आ जाती है । इस अवस्था में नायक द्वारा फलप्राप्ति प्रायः निश्चित सी हो जाती है । अंततः फलागम की स्थिति है । नायक द्वारा फलप्राप्ति हो जाती है, वह मोक्ष को प्राप्त कर लेता है । यह सुघड़ कथानक बड़े ही कौशल के साथ विकसित हुआ है और कथाक्रम कहीं विच्छिन्न नहीं हो पाया है । चरित्रचित्रण : स्पष्ट है कि गजसुकुमाल स्वयं ही इस रास काव्य का नायक है । . उच्च वंशोत्पन्न गजसुकुमाल न केवल इस कथानक में स्थित है अपितु आद्योपांत वही वर्णित और चित्रित भी है । कथानक की मूल समस्या उसी के जीव से संबंधित है । वही उसके समाधानार्थ प्रयत्नशील है और फल का भोक्ता भी वही है । सभी दृष्टियों से गजसुकुमाल नायक ही नहीं, उत्तम कोटि का नायक निर्णीत होता है । उनकी गुरुजनों के प्रति आदरभावना, क्षमाशीलता, सहिष्णुता, लक्ष्य के प्रति दृढ़ता, साधनाप्रियता आदि अनेक सद्गुणों के कारण वह एक उदात्तपुरुष है । मात्र १२ वर्ष की अवस्था में गजसुकुमाल साधना पथ के पथिक हो गए। उनका समस्त जीवन ही वैराग्य को समर्पित है। यही विरक्ति गजसुकुमाल के चरित्र की प्रमुख और प्रतिपाद्य विशेषता है । उनके चरित्र के अन्यान्य गुण - धैर्य, संयम, क्षमाशीलता, सहनशीलता आदि इसी विरक्ति की प्रबल भावना से उत्प्रेरित हैं । गजसुकुमाल दृढ़ मुमुक्ष हैं, उन्होंने दीक्षा के पश्चात् ही मोक्ष मार्ग की खोज आरंभ कर दी थी। भगवान नेमि से संकेत पाकर तुरंत उस मार्ग का अनुसरण भी उन्होंने आरंभ कर दिया । वे उग्र तपस्वी थे, यहां तक कि साधनारंभ के दिन ही उन्होंने मोक्ष भी प्राप्त कर लिया । उनकी संवेदनशीलता भी बढ़ी चढ़ी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy