________________
हिन्दी जैन श्रीकृष्ण रास, पुराण-साहित्य और अन्य
२१३
कृष्ण के चाणूर मल्ल द्वारा कृष्ण से किया गया मल्लयुद्ध, कंस तथा जरासंध हनन का भी कवि ने उल्लेख किया है। कृष्ण वासुदेव राजा है। शंख, चक्र तथा गदा आदि का धारण करना जैन परंपरा के अनुसार वासूदेव का लक्षण है । कवि ने उसका उल्लेख इस प्रकार किया है
.. संख चक्क गज पहरण धारा, कंस नराहिव कय संहारा। जिण चाणउरि मल्लु बियरिउ, जरासिंधु बलवंतऊ धातिउ ।।68
कथानक एवं उसकी संरचना :
प्रस्तुत खंडकाव्य के कथानक का आधार भी गजसुकुमाल संबंधी जैन पुराणों के आख्यान ही रहे हैं। नपति श्रेष्ठ श्रीकृष्ण द्वारका के शासक हैं। इसी समय भगवान अरिष्टनेमि का द्वारका आगमन होता है। भगवान के शिष्यों में छ सहोदर बंध भी थे और रूप रंग में भी उनमें पर्याप्त साम्य था। इनमें से दो मुनि आहारार्थ देवकी के यहां आए। कुछ ही अंतराल में अन्य दो और फिर शेष दो बंधु भी आ पहुंचे । देवकी असमंजस में पड़ गयी। नियम विपरीत मुनिगण एक ही घर में बार-बार कैसे आ रहे हैं ? देवकी के हृदय में इन युवा साधुओं को देख कर असीम वात्सल्य भाव उमड़ आया। कारण उसे ज्ञात नहीं हो सका। भगवान ने स्पष्ट किया के ये ६ पुत्र स्वयं देवकी के हैं जो सुलसा के घर बड़े हुए हैं और सुलसा के मतपुत्र ही कंस को दिए गए थे । देवको का मातृत्व इस दृष्टि से अपूर्ण रह गया कि उसका कोई पुत्र अपने बाल्यकाल में उसके पास नहीं रहा और वह अपने वात्सल्यभाव को तुष्ट नहीं कर पायी। श्रीकृष्ण ने उसकी मनोकामना जानकर तपस्या की। देवता से उन्हें ज्ञात हुआ कि देवकी को एक पूत्र और प्राप्त होगा, किंतु माता इस पूत्र से केवल बाल्य-काल का सुख ही प्राप्त कर सकेगी। यथासमय देवकी को पुत्र प्राप्त हुआ, जो गजशावक सा सुकुमार और सुंदर था, अतः उसका नाम गजसुकुमाल रखा । अपने नाम के इस अनंत प्रेम भरे वातावरण में बालक बड़ा होने लगा । एक दिन द्वारका में पुनः भगवान नेमिनाथ का पदार्पण हुआ। भगवान की वाणी का गजसुकुमाल पर गहन आंतरिक प्रभाव हआ और उसके मन में विरक्ति की भावना प्रबल हो उठी। स्वजन-परिजनों विशेषतः श्रीकृष्ण के प्रयत्नों से सोमिल ब्राह्मण की सुंदरी कन्या सोमा के साथ गजसुकुमाल का विवाह हो गया। किंतु, गजसुकुमाल ने भी तुरंत ही दीक्षा ग्रहण कर ली।
६८. वही, अप्रकाशित हस्तलिखित प्रति, ग्रंथभण्डार, जैसलमेर दुर्ग ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org