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________________ २१२ जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य रचनाकाल : वि० सं० १३१३ से १३२४ के मध्यानुमानित है । उपलब्धि : जैसलमेर ज्ञान भण्डार तथा अभय जैन ग्रंथालय बीकानेर में हस्तलिखित प्रति । जैसलमेर भण्डार की प्रति वि० सं० १४०० की लिखी हुई है । कृतिकार के गुरु का नाम जगच्चन्द्रसूरि था । 66 श्रीकृष्ण- वृत्तांत : नेमिनाथ रास की भांति " गजसुकुमाल रास" खंडकाव्य कोटि की प्रबंध रचना है। परंपरागत आख्यान ३४ छंदों में वर्णित है । गजसुकुमाल के चरित को इस कृति में प्रमुख प्रतिपाद्य के रूप में अपनाया गया है । और, प्रासंगिक रूप में ही श्रीकृष्ण का वृत्तांत आया है । श्रीकृष्ण के कनिष्ठतम भ्राता गजसुकुमाल थे । गजसुकुमाल के जन्म-पूर्व की परिस्थितियों, पारिवारिक परिचय आदि के प्रसंगों में श्रीकृष्ण का वृत्तांत स्वाभाविक ही है । आरंभ में श्रीकृष्ण का द्वारका के श्रेष्ठ शक्तिशाली और पराक्रमी नरेश के रूप में चित्रण हुआ है। उनका महापुरुष व्यक्तित्व बड़े कौशल के साथ अंकित हुआ है । श्रीकृष्ण के पौरुष, शौर्य और पराक्रम का चित्रण अनेक प्रसंगों में हुआ है । यथा -- कंस-संहार, चाणूर- वध, जरासंध - हनन आदि । श्रीकृष्ण चरित्र के एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष को भी इस रचना में स्थान दिया गया है जिससे उनकी मातृभक्ति और धर्मभावना व्यक्त हुई है । काव्य रूप : जैसा कि वर्णित किया जा चुका है " गजसुकुमाल रास" एक खण्डकाव्य है अतः कथानक का केंद्रित विषय गजसुकुमाल चरित ही रहा है । नायक गजसुकुमाल के चरित्रांकन की सीमा में अन्यान्य प्रासंगिक घटनाओं का वर्णन हुआ है। प्रबंधात्मकता, रसनिष्पत्ति, वस्तुविधान, काव्यसौष्ठवादि सभी दृष्टियों से खण्डकाव्य की कसौटी पर प्रस्तुत कृति खरी उतरती है। कृति में श्रीकृष्ण के वीर और पराक्रम संपन्न राजपुरुष का व्यक्तित्व कवि ने हमारे सामने प्रस्तुत कर दिया है । यथा नयरिहि रज्जु करेई तहि कण्ह नरिंदु । नरवं मनि सणहो जिव सुरगण इंदू ॥187 ६६. हिंदी रास काव्य, डा० हरीश, पृ० ८०१. ६७. गजसुकुमाल (अप्रकाशित), हस्त प्रति, अभय जैन ग्रंथालय, बीकानेर | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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