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हिन्दी जैन श्रीकृष्ण रास, पुराण- साहित्य और अन्य
कान्ह गयो जब चौक में, चाणूर आयो तिहि बार । पकड़ पछाड्यो आवतो, चाणूर पहुंच्यो यमद्वार ॥ कंस कोप करि उठ्यो, पहुंच्यो जादुराय पे । एक पलक में मारियो, जमघरि पहुँच्यो जायतो ॥ जै जै कार शब्द हुआ, बाजा बाज्या सार । कंस मारि घीस्यो तबे, पलक न लाइ बार 1182
श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्द्धन धारण की घटना का भी कवि ने उल्लेख करते हुए लिखा है
हंसो मन में चिन्तते, परवत गोरधन लियो उठाय । चिटी आंगुली ऊपरे, तलिउ या सब गोपी गाय ॥ 83
कृति के अंतिम अंश में कृष्ण की धर्म विषयक रुचि और नेमिनाथ के प्रति श्रद्धाभाव का वर्णन आया है
नमस्कार फिरिफिरि कियो, प्रश्न कियो केशवराय । भेद को सप्त तत्त्वको, धर्म-अधर्म कह्यो जिनराय ॥ 64
कृति में कृष्ण के बालगोपाल स्वरूप का विवेचन करते हुए कवि ने श्रीकृष्ण को दधिमाखन खाने और उसे फैलाने का चित्रण भी किया हैमांखण खायरु फैलाय, मात जसोदा बांधे आणि ते । पायो डरपे नहीं, माता तणीय न माने काणि ते ।। कृष्ण के गोपाल वेश का वर्णन देखिए
काना कुण्डल जगमगे, तन सोहे पीताम्बर चीर तो । मुकुट बिराजे अति भलौ, बंशी बजावे श्याम शरीरतो 1185
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इस कृति की भाषा में राजस्थानी प्रभावित हिंदी के तद्भव शब्दों
का बाहुल्य है । दोहा, सोरठा, छंदों का विशेष रूप से कवि ने प्रयोग किया
है
(७) गजसुकुमाल रास : देवेंद्र सूरि
६२. हस्तलिखित पदसंख्या १७०-७३ ।
६३. हस्तलिखित प्रति पदसंख्या १८४ | ६४. वही -- पदसंख्या ११० ।
६५. हस्तलिखित प्रति, पदसंख्या १६८-६६ ।
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