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________________ २१० जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य अंबावती सुभथान, सवाई जयसिंह महाराजई। पातिसाह राखे मान, राजकरे परिवार स्युं ॥१॥ अंबावती नगरी (आमेर-जयपुर) में राजा सवाई जयसिंह का राज्य है। बादशाह इनका सन्मान करता है। यहीं पर प्रस्तुत कृति की रचना रचनाकाल का उल्लेख इस प्रकार हुआ हैससरासे गुणहत्तरे सुदि आसोज दसे रवि जाणि तो। रास रच्यो श्रीनेमि को, बुधिसार में कियो वखांण तो ।।60 अर्थात् संवत १७६६ आसोज शक्ला १० रविवार को यह रचना पूर्ण हुई। कवि ने अपने गुरु का नाम जगत्कीति बतलाया है जो मूलसंध, बलात्कार गण, सरस्वती गच्छ के आचार्य थे । प्रस्तुत रचना हरिवंशपुराण के आधार पर रचित है हरिवंश की में वारता, कही विविध प्रकार। नेमिचन्द्र की वीनती, कवियण लेह सुधार ॥61 जिनसेन के हरिवंशपुराण के अनुसार इसमें श्रीकृष्ण का चरित है, कृति में सर्गसूचक शब्द, “अधिकार" का प्रयोग है, कुल ३६ अधिकार हैं। कृति का प्रारंभ मंगलाचरण से कर के प्रारंभिक दो अधिकारों में श्रेष्ठ पुरुषों की वंदना है, तृतीय अधिकार में कथावस्तु का प्रारंभ हुआ है। श्रीकृण जन्म, बाल-लीला, कंसवध, यादवों का द्वारिका निवास, रुक्मिणी-हरण, शिशुपाल-वध, नेमिनाथ का जन्म, कृष्ण-जरासंध युद्ध, द्रौपदी-हरण, पुनः कृष्ण द्वारा द्रौपदी को लाना, कृष्ण का पांडवों पर कुपित होना तथा उनका हस्तिनापुर से निर्वासन, नेमिनाथ, का गहत्याग, तप व केवलज्ञान की उपलब्धि, द्वारिका में नेमिनाथ के आगमन के प्रसंग, कृष्ण के परिजन रानियों, पुत्रों आदि का दीक्षा ग्रहण, द्वारिका विनाश, कृष्ण का परमधाम गमन, बलराम की तप और मुक्ति, इत्यादि प्रसंगों का क्रमशः वर्णन आया है। प्रारंभ में कृष्ण चरित्र को तथा अंतिम अधिकारों में नेमिनाथ चरित्र की विवेचना है। कृति के प्रमुख पात्र श्रीकृष्ण हैं जिनके वीरतापूर्वक कार्यों का उल्लेख है जो अति सुंदरता से अभिव्यक्त हुआ है । यथा६०. वही–पदसंख्या १३०६ । ६१. आमेर शास्त्र भण्डार की हस्तलिखित प्रति, पदसंख्या-१२७२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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