________________
हिन्दी जैन श्रीकृष्ण रास, पुराण- साहित्य और अन्य
जबहि खरग हाथ हरि लयउ, चन्द्र रयणि चांवइ कर गहिउ । रथ ते उतरि चले भर जाम, तीनि भुवन अकुलाने ताम || इंदु चंदु अणु मे खलभलउ, जाणौ गिरिपर्वतउ टलटलअ । अन मा कहर सुरंगिनि नारि, अवयहु इहs कइसी मारि || 57
भाषा, छंद एवं अलंकार :
प्रद्युम्नचरित ब्रज भाषा का काव्य है और यह ब्रज भाषा राजस्थानी से प्रभावित है । उस काल में ब्रज में वीर रस की इतनी प्रभावपूर्ण रचना द्वारा इस कृति के कर्ता ने एक अद्भुत कौशल का परिचय दिया है । हां, इतना अवश्य है कि ग्रंथ की ब्रज भाषा अपभ्रंश एवं राजस्थानी से प्रभावित है।
२०६
इस काव्य में मुख्यतः चौपाई छंद का विशिष्ट प्रयोग हुआ है। चौपाई के अतिरिक्त भी कतिपय अन्य छंद प्रयुक्त हुए हैं और इनमें दोहा, सोरठा, ध्रुवक, वस्तुबंध आदि प्रमुख छंद हैं।
प्रस्तुत रचना में स्थल-स्थल पर अलंकारों का सुंदर और आकर्षक प्रयोग हुआ है । रूपक, उत्प्रेक्षा, उदाहरण, स्वभावोक्ति, उपमा आदि के प्रति कवि का स्नेह इस काव्य में अधिक प्रकट हुआ है । उत्प्रेक्षा के कतिपय प्रयोग तो उल्लेखनीय ही हैं, जैसे
सेन उठि बहु सादु समुद्र, जाणो उपनउ उथल्यउ समुद्र । नरसहिबाण सरे असराल, जाणो घण गाजर मेघकाल | 58 प्रद्युम्नचरित इस प्रकार हिंदी भाषा की एक उत्तम कृति है । (६) नेमीश्वर रास :
प्रस्तुत कृति के रचयिता कवि नेमिचंद्र हैं । यह रचना ई० सन् १७१२ (वि० सं० १७६९) में हुई । कवि ने अपना विस्तृत परिचय, गुरु-परंपरा, कृति का रचना काल एवं स्थान का परिचय में कृति में दिया है । यथा
-59
५७. प्रद्युम्नचरित छंद संख्या ५३६, ४०, ४१ ।
५८. प्रद्युम्नचरित, सं० पं० चैनसुखदास व कस्तुरचन्द कासलीवाल, ५६. नेमीश्वररास, हस्तलिखित प्रतिलिपि वि० सं० १९९३, प्रतिलिपिकार पाण्डेय दयाराम, उपलब्ध आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर प्रति प्रपन्न २७ / १२८४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org