SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०८ 56 झेलना या सर्प के मुख में हाथ डालना । शौर्य के रंग में रंगा हुआ लगता है । जैन - रंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य समग्र काव्य ही उनके अपार प्रद्युम्न कुमार के अतिरिक्त श्रीकृष्ण, बलराम, रुक्मिणी, नारद, कालसंवर, कनकमाला, भानुकुमार आदि अन्य पात्रों के चरित्र का भी यथासंभव चित्रण हुआ है । रुक्मिणी की अतीव सुंदरता और पुत्र-प्रेम, श्रीकृष्ण की शक्तिमत्ता एवं पराक्रम, बलराम का भ्रातृस्नेह, सत्यभामा की द्व ेष भावना, नारद का ज्ञान एवं उनका क्रोध - प्रतिशोध आदि सुंदरता के साथ चित्रित हुआ है । रस- योजना : प्रद्युम्न चरित काव्य में युद्धों के वर्णन अतिरेक के साथ मिलते हैं । श्रीकृष्ण शिशुपाल युद्ध, प्रद्युम्न श्रीकृष्ण युद्ध, प्रद्युम्न कालसंवर युद्ध, प्रद्युम्न रुक्मि युद्ध आदि अनेक युद्धों का ऐसा विस्तृत वर्णन हुआ है कि समग्र काव्य में वीर रस की धारा ही प्रवाहित दृष्टिगत होती है, सर्वत्र ओज ही ओज है । युद्धारंभ से पूर्व का वीरों का वार्तालाप भी पूर्णतः वीरत्व से ही रससिक्त है । युद्धोपरांत रणक्षेत्र के दृश्य वर्णन में बीभत्स रस, रुक्मिणी रूप वर्णन एवं श्रीकृष्ण-रुक्मिणी मिलन में शृंगार रस की सृष्टि भी हुई है । अंत में प्रद्युम्न विरक्त हो साधनामार्ग ग्रहण कर लेते हैं और इस स्थल पर शांत रस आ जाता है । इस प्रकार वीर रस प्रधान इस प्रबंध में अन्यान्य कतिपय रसों को भी उपयुक्त और समीचीन स्थान प्राप्त हुआ है । वीररस का उदाहरण जानने के लिए पराक्रमी राजा कृष्ण अपनी तलवार हाथ में लेकर युद्ध भूमि में ऐसे विराजते हैं जैसे कि यमराज स्वयं आकर उपस्थित हो गये हों । उनके खड्ग धारण करने से समस्त लोक आकुल व्याकुल हो जाते हैं । देवराज इंद्र और शेषनाग भी व्याकुल हो उठते हैं । यथा तव तिहि घनहर घालिउ रालि, चन्द्र हंसकर लियो संभालि । बीजु समिसु चमकइ करवालु, जाणीसु जोभ पसारे काल || ५६. सबई वीर बोलई प्रज लेइ, आवत वज्र होलि के लेई । बिसहर मुह घाले हत्थ, सो मो सहु जुझणह समत्थो । २०६ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy