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________________ विषय की शोधानुकूलता और भूमिका होते हैं। इनके अतिरिक्त १२ चक्रवर्ती, ६ वासुदेव तथा ६ प्रतिवासुदेव होते हैं, और ६ बलदेव होते हैं, इस प्रकार ६३ श्लाघनीय महापुरुष प्रत्येक काल में होते हैं। वर्तमान अवपिणो काल में इन परमपूज्य महापुरुषों का वर्णन "त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित" में किया गया है । जैन साहित्य में श्रीकृष्ण वासुदेव हैं वासुदेव महान वीर और अपराजेय होते हैं। वे ३६० युद्ध करते हैं और कभी पराजित नहीं होते हैं । २० लाख अष्टापद जानवरों की ताकत शक्ति रखने वाले वासुदेव कभी भी अपनी शक्ति का दुरुपयोग नहीं करते । बलशाली होकर भी वे उपास्य नहीं होते। उपास्य तो केवल तीर्थंकर ही होते हैं और स्वयं वासुदेव भी तीर्थंकरों की उपासना करते हैं। वासुदेव अपने समय के सर्वश्रेष्ठ अधिनायक होते हैं । अध्यात्म क्षेत्र में निदानकृत होने के कारण वे चौथे गुणस्थान से आगे नहीं बढ़ पाते। तीर्थंकरत्व की सर्वोच्च आध्यात्मिक उपलब्धि उनके लिए संभव नहीं होती । प्रत्येक वासुदेव के पूर्व कोई प्रतिवासुदेव होता है, जिसका तीन खण्डों पर आधिपत्य होता है, और जीवन के अन्तिम भाग में वह सत्ता और शक्ति के मद में उन्मत्त रहने लगता है। ऐसी स्थिति में प्रतिवासुदेव अन्यायी और अत्याचारी हो जाता है। इस अत्याचार को समाप्त करने एवं दुर्बलजनों की रक्षा करने के लिए वासुदेव उससे युद्ध करता है और प्रतिवासुदेव का विनाश होता है । वासुदेव ही प्रतिवासुदेव के त्रिखंड साम्राज्य का स्वामी हो जाता है। श्रीकृष्ण वासुदेव थे । जरासंध प्रतिवासुदेव था। बलदेव सदा वासुदेव का सहायक होता है और इस त्रिपुटी में बलराम ही बलदेव थे। जैन साहित्य में श्रीकृष्ण का चरित स्वरूप इसी प्रकार वासुदेव के रूप में उभरा है। वे पराक्रमी शक्तिशाली और शूरवीर हैं । वासुदेव के रूप में श्रीकृष्ण महापुरुष वासुदेव होने के नाते जैन परम्परा में श्रीकृष्ण उपास्य नहीं अपितु तीर्थंकर के उपासक हैं । इसके विपरीत श्रीकृष्ण वैदिक परम्परा में आराध्य हैं, उपास्य हैं। वे भागवत धर्म के प्रवर्तक हैं । वे विष्णु के अवतार हैं। श्रीकृष्ण निराकार परमात्मा के सगुण रूप हैं । अवतारवाद का मूल आधार यही रहा है कि परमात्मा दुष्टों के दलन एवं दुर्बलों के रक्षण हेतु मानव देह धारण कर धरती पर अवतरित होते हैं । मनुष्य तो इस परम्परा में ईश्वर नहीं बन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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