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हिन्दी जैन श्रीकृष्ण रास, पुराण-साहित्य और अन्य
२०५ द्वारका नगरी का विशद वैभव और सौंदर्य अत्यंत प्रभावशाली ढंग से अंकित किया गया है। साथ ही द्वारकाधीश श्रीकृष्ण के बल, विक्रम और शौर्य का यशोगान भी हुआ है । नायक प्रद्युम्नकुमार के जनक-जननी होने के नाते इस युगल श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाहादि के सूत्रों को भी कथानक में समुचित महत्व दिया गया है । यथा-श्रीकृष्ण द्वारा रुक्मिणी हरण की कथा, शिशुपाल (रुक्मिणी के लिए नियत किया गया वर) के वध का प्रसंग आदि ऐसे ही प्रसंग हैं, जो संपूर्ण कथानक में समग्रता लाने की दृष्टि से अनिवार्य भी हैं, जिनके द्वारा श्रीकृष्ण वृत्तांत का समावेश इस चरित काव्य में स्वतः ही हो गया है। ऐसे प्रसंगों के वर्णन में कवि ने उत्साह भी दिखाया है। इन कथासूत्रों के माध्यम से श्रीकृष्ण के चरित्र की अनेक विशेषताएं (यथा शौर्य पराक्रम शक्ति साहसादि) उद्घाटित हो गयी हैं तथा इतर प्रसंगों में भी श्रीकृष्ण चरित्र की इन विशेषताओं को प्रतिष्ठित किया गया है। प्रबंध के अंतिम दो सर्गों में तो श्रीकृष्ण की धर्मनिष्ठा का अत्यंत प्रभावशाली विवेचन किया गया है। वस्तुतः श्रीकृष्ण-वृत्तांत की दृष्टि से “प्रद्युम्नचरित" एक अत्यंत महत्वपूर्ण कृति मानी जाती है। कथानक को संरचना :
__ कवि ने ७०१ पद्यों में प्रद्युम्न की कथा कहो है जो ६ सर्गों में विभाजित है। घटनाओं का क्रम शृंखलाबद्ध है। यह काव्य प्रचलित रूप में जैन परंपरा द्वारा मान्य प्रद्युम्नचरित्र ही है। इस काव्य में यही वर्णित है और इसके कथानक के आधार जैन पौराणिक ग्रंथ ही रहे हैं। कथानक की दृष्टि से रचना में कवि के प्रबंध-कौशल का भी स्पष्ट परिचय मिलता है।
__ श्रीकृष्ण द्वारका के नरेश और सत्यभामा उनकी पटरानी है। स्वच्छंद विहारी नारद जी का द्वारका आगमन होता है। सत्यभामा द्वारा उपेक्षा पाकर नारद जी क्षुब्ध हो गए और उसका गर्व चूर करने की युक्ति खोजने लगे। कुंडनपुर नरेश राजा भीष्म की त्रिलोकसुंदरी कन्या रुक्मिणी को उन्होंने माध्यम माना और प्रयत्नपूर्वक श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के मध्य प्रणय संबंध स्थापित कर दिया। दोनों पारस्परिक मोह से ग्रस्त हो, एक दूसरे को प्राप्त करने की कामना करने लगते हैं । जब नारद जी सूचित करते हैं कि रुक्मिणो का परिणय शिशुपाल के साथ होना निश्चित हो गया है तो श्रीकृष्ण रुक्मिणी का हरण कर लेते हैं और विरोध करने पर शिशपाल का वध कर देते हैं। द्वारका में श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह संपन्न होता है। और कालांतर में रुक्मिणी राजकुमार प्रद्युम्न को जन्म देती है । छ ही दिन
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