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जैन परंपरा में श्रीकृण साहित्य
के विभिन्न नगरों में जैसे सांगानेर, रणथम्भोर, सांभर, टोडारायसिंह और हारसोल में ये विचरण करते थे । इनकी रचनाओं में क्रमशः
नेमीश्वररास
१६१५
सुदर्शन रास
१६२६
१६२८
प्रद्युम्नरास परमहंस चौपाई १६३६
हनुमंतरास
श्रीपाल रास
भविष्यदत्त रास
तथा जम्बुस्वामी चौपाई, निर्दोष सप्तमी कथा, आदित्यवार कथा, चंद्रगुप्त स्वप्न चौपाई, चिंतामणि जयमाल, ज्येष्ठ जिनवर कथा और ४६ ठाणा,
१६१६
१६३०
१६३३
सभी इनकी रचित कृतियां हैं । इन कृतियों की भाषा राजस्थानी है तथा ये गीतात्मक शैली में लिखी हुई हैं। ऐसा लगता है कि कवि अथवा उनके शिष्य इन कृतियों को सुनाया करते थे । भविष्यदत्त रास सर्वोत्तम कृति मानी गयी है ।
यहां पर हमने इसका संक्षिप्त परिचय देना ही उचित समझा क्योंकि प्रद्युम्न का चरित्र विस्तृत रूप में पूर्व ही विवेचित कर चुका हूं । इसकी कथा भी प्रायः वही है । डा० कस्तूरचंद कासलीवाल की पुस्तक अन्य जानकारी के लिये द्रष्टव्य है 1 53
(५) प्रद्युम्नचरित :
कवि सधारु कृत प्रद्यम्न चरित की रचना संवत १४११ (सन् १३५४ ) की मानी जाती है । यह भी एक प्रकाशित रचना है। 54 प्रद्युम्नचरितः प्रस्तावना पृ० २६ देखिए ।
कृति में श्रीकृष्ण - वृत्तांत :
प्रस्तुत प्रबंध रचना के चरित नायक कृष्ण के रुक्मिणी से उत्पन्न पुत्र प्रद्युम्नकुमार हैं। उन्हीं का चरित प्रमुखता के साथ वर्णित है । किंतु, प्रद्युम्नकुमार श्रीकृष्ण-रुक्मिणी के पुत्र हैं इस नाते प्रासंगिक रूप में श्रीकृष्ण चरित का वर्णन भी स्वाभाविक ही लगता है । काव्यारंभ में ही
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५३. राजस्थान का जैन साहित्य : डा० कस्तुरचंद कासलीवाल, संस्क०, १९७७ पृ०२०८, २०६, प्रकाशक, प्राकृत भारती, जयपुर
५४. प्रद्युम्नचरित, संपा०, पं० चैनसुखदास व डा० कस्तूरचंद कासलीवाल,
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