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जन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य अंततः उनके संसार से विरक्त होने में सहायक होती है। कठोर तप-साधना के परिणाम स्वरूप उन्हें कैवल्य व कालांतर में मोक्ष भी प्राप्त होता है। अन्य पात्र :
___ नायक नेमिनाथ के अतिरिक्त भी अन्य कुछ पात्र ऐसे हैं जिनकी चारित्रिक विशेषताओं का चित्रण इस प्रकार से हआ है कि उनके नायक के चरित्रगत वैशिष्ट्य को उजागर करने में तो सहायता मिली ही है, साथ ही संबंधित पात्रों के चरित्र को भी महत्वपूर्ण अवकाश प्राप्त हुआ है। ऐसे पात्रों में अग्रगण्य हैं राजीमती (राजल)। इसके अतिरिक्त जिनपात्रों का प्रासंगिक उल्लेख मिलता है वे हैं-राजा समुद्रविजय, रानी शिवादेवी, द्वारकाधीश श्रीकृष्ण, बलभद्र, श्रीकृष्ण की अग्रमहिषियां (पट्रानियां), राजुल के पिता राजा उग्रसेन आदि । प्रमुखता के क्रम में इन सहायक पात्रों में राजीमती के पश्चात् श्रीकृष्ण का ही स्थान है। किंतु, जैसा कि पूर्व में वर्णित किया जा चुका है, उनका चरित्रगत विकास इस कृति में चित्रित नहीं हो पाया है, स्फुट विशेषताएं ही यत्र-तत्र आभासित हो पायी हैं। रसयोजना :
। प्रस्तुत काव्य "नेमिनाथ रास" एक भावपूर्ण और सरस सफल खंडकाव्य है, इसमें शान्त रस का प्राधान्य है। यह कहना पड़ेगा कि इसमें वीतराग रस है। चारित्रिक विशेषताओं को देखते हुए स्वयं नायक नेमिनाथ तो निर्वेद के ही प्रतिरूप लगते हैं। बाल्यकाल से ही सांसारिक सुखों के प्रति उनकी उदासीनता, राज्य-वैभव के प्रति उनकी निर्लिप्तता की भावना, निरीह पशओं का करुण-क्रंदन सूनकर तोरण द्वार से भी अविवाहित लौट आना आदि नायक के निर्वेद भाव को स्पष्टतः व्यक्त कर देते हैं। नेमिनाथ के इस स्वरूप से प्रभावित होकर राजीमती द्वारा दीक्षा ग्रहण किया जाना भी इसी वीतराग रस की याने शांतरस की प्रबलता में सहायक हुआ है। अंततः नेमिनाथ कैवल्य प्राप्त करते हैं इस प्रकार खंडकाव्य का समापन भी शांतरस में ही होता है। इसे मैं वीतराग रस मानता हूँ।
शांतरस की इस प्रधानता के साथ-साथ करुण और शृंगार रसों को भी स्थान मिला है। राजीमती का विवाह जब यादव-कूलरत्न अरिष्टनेमि के साथ निश्चित हो जाता है तो मनोज्ञ पति के प्राप्ति की इस कल्पना से राजीमती अत्यंत हर्षित उल्लसित और गवित होती है। भावी जीवन की गरिमापूर्ण स्वप्नराशि में वह निमग्न सी हो जाती है। भविष्य की उसकी
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