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हिन्दी जैन श्रीकृष्ण रास, पुराण-साहित्य और अन्य
१६६ दोनों कृतियां कृष्ण की वीरता और ऐसे पराक्रमों के अनेक वर्णनों से भरी पड़ी हैं। (३) नेमिनाथ रास :
श्रीकृष्ण चरित से संबद्ध उपलब्ध रास साहित्य में "नेमिनाथ रास" प्राचीनतम काव्य है। इसका रचना काल वि० सं० १२७० माना जाता है।52 इसके कर्ता सुमति गणि हैं जो खरतरगच्छीय श्री जिनपतिसूरि के शिष्य थे। रचनाकार का नामोल्लेख ग्रंथ की पुष्पिका में हुआ है :
___ "इति श्री नेमिकुमार रास पण्डित सुमतिगणि विरचितः ॥"
कृतिकार सुमति गणि राजस्थान के निवासी थे-ऐसा स्वीकार किया जाता है। जैसलमेर दुर्ग के बड़े भण्डार में "नेमिनाथ रास" की एक हस्तलिखित प्रति उपलब्ध है। भाषा की दष्टि से इस काव्य-रचना का अति महत्वपूर्ण स्थान है। यह प्रारंभिक हिंदी की एक प्रौढ़ और सुंदर रचना है। यह उस काल की रचना है जब कि हिंदी में अत्यल्प रचनाएं हो रही थीं। तब इस प्रकार की परिपक्व रचनाएं तो और भो कम थीं। यही इसका महत्व है। श्रीकृष्ण-वृत्तांत :
नेमिनाथ रास नायक प्रधान शीर्षक है और इससे स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि इस रास काव्य का मल प्रतिपाद्य विषय भगवान नेमिनाथ का जीवन चरित्र है। तथापि प्रासंगिक रूप में श्रीकृष्ण का चरित्र भी वर्णित हुआ है । नेमिनाथ और राजुल का परिणय इस ग्रंथ में प्रमुख वर्ण्य विषय रहा है
और इतिहास साक्षी है कि इस सारे प्रसंग में श्रीकृष्ण की भूमिका न केवल विशद अपितु महत्वपूर्ण भी रही है । ऐसी स्थिति में श्रीकृष्ण का वृत्तांत इस रचना में व्यापकता के साथ आये तो स्वाभाविक ही है।
___"नेमिनाथ रास" में श्रीकृष्ण द्वारका के परम शक्तिशाली और पराक्रमी नरेश के रूप में वणित हुए हैं। उनकी विभिन्न रानियों-विशेषतः सत्यभामा का परिचय भी विस्तार से दिया गया है। विभिन्न छोटे-छोटे प्रसंगों में श्रीकृष्ण का उल्लेख मात्र ही प्रस्तुत काव्य में मिलता है। उनके चरित्र और चरित का व्यवस्थित एवं क्रमिक विकास नहीं है। ५२. भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण : एक अनुशीलन, ले. देवेंद्र मुनि शास्त्री, प्र.
तारक गुरु जैन ग्रंथालय, उदयपुर ।
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