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________________ जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य इन ग्रंथों के रचयिता जाति से दिगंबर जैन थे और इनका जन्म टोडा ( जयपुर ) ग्राम में हुआ । इसके बाद ये सांगानेर में जाकर बस गये और यहीं पर दोनों ग्रंथ रचे गये । १६८ हरिवंश पुराण और उत्तरपुराण में परंपरागत जैन कथा वस्तुविवेचन है । हरिवंशपुराण में तीर्थकर अरिष्टनेमि, उनके समकालीन कृष्ण, बलराम और जरासंध आदि शलाका पुरुषों का वर्णन है । उत्तरपुराण में ऋषभदेव के अतिरिक्त २३ अन्य तीर्थकरों और उनके समकालीन शलाका पुरुषों के संक्षिप्त चरित वर्णित हैं। दोनों कृतियों की भाषा बोलचाल की सरल हिंदी है तथा दोनों में प्रसाद गुण पाया जाता है । छंदों की दृष्टि से चौपाई, दोहा, सोरठा आदि मात्रिक छंदों क प्रयोग हुआ है । सर्ग के लिए संधि शब्द का प्रयोग किया है । परंपरागत तीन श्रेष्ठ जैन पुरुष व्यक्तियों का इसमें समावेश है । यहां पर दोनों में से कुछ उदाहरण दिए जाते हैं १ – देवां वन में जाय, मेघ तनी वरसा करी । 50 गोवर्धन गिरिराय, कृष्ण उठाय चापसी । दूसरा उदाहरण मल्लयुद्ध प्रसंग का है, यथा२ -- जाके सम्मुख दोड्यो जाय, देत उपारि लये उमगाय । ताहि दंत थकी गज मारी, हस्ति भागि चली पुर मकारि ॥ ताहि जीति शोभित भए, कंस आप मल्ल मति लखितए ॥ रुधिर प्रवाह की विपरीत, देख क्रोध धरि करि तजि नीति ॥ आप मल्ल के आयां साथ, तब हरि वेग अरि निध जोय ॥ चरण पकरि तब लयो उठाय, पंखि सन उत ताहि फिराय ।। फेरि धरणि पटक्यो तबे, कृष्ण कोय उपनाय । मानू यमराजा तणी, सौले भेट चढ़ाय ॥ 51 इसमें कृष्ण के वीर स्वरूप का उत्साह के साथ वर्णन है । जरासंध के साथ हुए युद्ध में कृष्ण का यही पराक्रम अपने पूर्ण रूप से प्रकट हुआ है । ५०. हरिवंशपुराण पन्ना ६४, छंद ४७ । ५१. उत्तरपुराण पन्ना २००, छंद ३ से ६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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