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हिंदी जैन श्रीकृष्ण रास, पुराण-साहित्य और अन्य
१८६ रूप में प्रतिष्ठित होने योग्य सिद्ध हो रही हैं। इस प्रकार की अधिकांश कृतियां जैन हिन्दी साहित्य की हैं।
हिन्दी में श्रीकृष्ण सम्बन्धी साहित्य जैन और जैनेतर दोनों ही क्षेत्रों में पर्याप्त रचा गया और रचा जा रहा है। यद्यपि मूल प्रतिपाद्य विषय श्रीकृष्णचरित दोनों ही क्षेत्र के लिए एक ही रहा है, तथापि दोनों क्षेत्रों की रचनाओं में कतिपय ऐसी भिन्नताएं और असामान्यताएं भी विद्यमान हैं। उनके आधार पर इन दोनों प्रकार की रचनाओं को स्पष्टतः पृथक-पृथक पहचाना जा सकता है। दोनों को आकृतियां ही पृथक-पृथक् दृष्टिगत होती हैं।
जैन और जैनेतर कृष्ण साहित्य में शिल्प सम्बन्धी एक मूलभूत अंतर तो यह है कि जैन क्षेत्र में यह साहित्य अधिकांशतः प्रबन्धात्मक है। इन रचनाओं में श्रीकृष्ण जीवन सम्बन्धी प्रसंगों का एक सुगठित और सोददेश्य कथानक का आधार लिया गया है। इसके विपरीत जैनेतर हिन्दी श्रीकृष्ण साहित्य अधिकांशतः मुक्तक रूप का है।
___अन्य ज्ञातव्य, महत्वपूर्ण अन्तर श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व से सम्बध रखता है जिसे जैन और जैनेतर क्षेत्रों में अपनाया गया है । हिन्दी श्रीकृष्ण साहित्य की जैनेतर परम्परा में श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व का जो रूप खड़ा हुआ है, उसके अनुसार श्रीकृष्ण गोपीजनवल्लभ. राधाधरसुधापायी, रास-प्रिय, रसिक, वनमाली, होली खेलने वाले लला ही अधिक लगते हैं। उनका यह रूप केलिप्रिय और सामान्य धरातल तक ही सीमित रह गया है। जैनेतर परम्परा में वैदिक मान्यता के अनुरूप उनके व्यक्तित्व में अवतारीतत्त्व, दिव्यता और अलौकिकता भी ठीक से नहीं उतर पायी है। जैन परम्परा में भी यह अलौकिकता एवं दिव्यता नहीं आ पायी है और न वह आ भी सकती थी। कारण यह है कि ईश्वर जैसी किसी सत्ता में मूलतः जैनों का वह विश्वास ही नहीं है। जैनमत तो मानवीय सत्ता को ही सर्वोपरि मानता है। श्रीकष्ण का जो स्वप्न जैन परम्परा में मान्य रहा है वह तो एक पराक्रमशील महान् पुरुष का ही है। इस स्वरूप में श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व की प्रतिष्ठा में हिन्दी जैन श्रीकृष्ण साहित्य सर्वथा सफल और समर्थ रहा है। श्रीकृष्ण इस परंपरा में भी मानव और लौकिक रूप में ही चित्रित हुए हैं। किन्तु, उनके व्यक्तित्व में एक भव्यला और महानता के दर्शन होते हैं। उन्हें साधारण रसिया के स्तर पर नहीं लाया गया अपितु नरोत्तम माना गया है। वे जैन परंपरा में मान्य ६३ श्लाका पुरुषों में सम्मान्य स्थान रखते हैं और शूर-वीर, शक्तिशाली, यशस्वी, तेजस्वी और वर्चस्वीसम्राट हैं । उन्हें शक्ति, शील व सौंदर्य का संगमरूप दिया गया है । वे
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