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हिंदी जैन श्रीकृष्ण रास, पुराण-साहित्य और अन्य
भूमिका
इतर साहित्य की भाँति ही जैन हिन्दी श्रीकृष्ण साहित्य के विकास की यात्रा में भी अपभ्रंश के पश्चात् हिन्दी का पड़ाव आता है। हिन्दी साहित्य में भी जैन साहित्य प्रचरता के साथ मिलता है। वर्तमान में अनेक मनीषि साहित्यकार इस दशा में कार्य करने के लिए सचेष्ट हैं और अब तक रचित हिन्दी जैन कृष्ण साहित्य जो समय के आवरण में लप्त हो गया है उसका भी पुनः अन्वेषण हो रहा है। फलतः अतीत में रचित ऐसे अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थ अन्वेषित हुए हैं जिनके कारण आदिकालीन साहित्य की कुछ प्रतिष्ठित मूल धारणाओं को भी पुनर्विचार को प्रेरणा दी है। कुछ विद्वानों का यह मत रहा है कि आदिकाल में ही हिन्दी साहित्य की प्रमुख कृतियां मिलती हैं।—खुमाण रासो, बीसलदेव रासो, पृथ्वीराज रासो, जयचंद प्रकाश, जयमंयक जस चन्द्रिका, परमाल रासो, रणमल छन्द, खुसरो की पहेलियां, विद्यापति पदावली आदि ।
इन कृतियों को महत्ता प्रदान करते हुए आदिकाल की साहित्यिक प्रवृत्तियों एवं विशेषताओं का अध्ययन करने के लिए इन कृतियों को आधारभूत माना गया है। जैन साहित्य भण्डारों की खोज की उपलब्धियों ने उन सारी धारणाओं को प्रभावित किया है। हिन्दी साहित्य के इतिहासकारों द्वारा आदिकालीन कृतियों के रूप में निश्चित की गयी कृतियों में से कुछ को छोड़कर शेष नयी खोजों पर सन्दिग्ध ठहरती हैं। इन नवीन खोजों के निष्कर्षानुसार इनमें से अनेक ग्रन्थ बहुत बाद की रचनाएं सिद्ध होती हैं और साथ ही अनेक नवान्वेषित कृतियां आदिकाल की रचनाओं के
१. स्व० आचार्य रामचंद्र शुक्ल : हिंदी साहित्य का इतिहास
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