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जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य
द्वारका-दाह
धर्मसभा में भगवान ने श्रीकृष्ण वासुदेव की अनकही मानसिक उलझन को भाँप कर कहा कि वासुदेव सदा कृतनिदान होते हैं, वे संयम पथ पर गमन नहीं कर सकते। उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा कि तुम्हारे भाई जराकुमार के हाथों तुम्हारा अवसान होगा और तुम्हारी द्वारका इससे पूर्व ही नष्ट हो जायगी। मदिरा, द्वापायन एवं अग्नि द्वारका-नाश के मूल कारण होंगे 17 भगवान ने कहा कि शौर्यपुर के समीप के तापस पारस का शारीरिक संबंध यमुनाद्वीप की नीच-वंशीय कन्या से हो गया था और द्वैपायन उसी का पुत्र है जो इंद्रिय-जेता है । मदिरा के मद में यादव वंशी द्वैपायन को पीड़ा देंगे और वे द्वारका को भस्म कर देंगे । तुम (श्रीकृष्ण) और
१६७. श्रीमद्भागवतानुसार
महाभारत युद्ध में अनेक गुणी एवं पराक्रमी यादवों का संहार हो गया था । जो शेष रहे उनमें से अधिकांशत: दुव्र्यसनी और अनाचारी थे अतः उन मदांध यादवों पर श्रीकृष्ण बलदेव का नियंत्रण व प्रभाव भी कम था। द्वारका के समीप रेवतक पर्वत एवं समुद्र के बीच प्रभास क्षेत्र में मिंडारक नामक स्थान था, जहां यादव आमोद-प्रमोद के लिए जाया करते थे। वहां एक उत्सव के अवसर पर यादवों ने मदिरापान किया और परस्पर संघर्षरत होकर वहीं समाप्त हो गये।
कृष्ण-बलराम, सारथी दारुक, वसुदेव और कुछ स्त्रियां बस ये ही जीवित बच गये । श्रीकृष्ण ने अर्जुन के पास दारुक के साथ संदेश भेजा कि वह द्वारका आकर यादव वंश के वृद्धों और स्त्रियों को हस्तिनापुर ले जावे। बलराम यादवों की इस महाविनाश लीला से दुःखित होकर मर ही चुके थे। बलराम के अवसान से दुःखी श्रीकृष्ण वन में एक पीपल वृक्ष के नीचे बैठे थे कि जराकुमार नामक एक व्याध ने उन्हें बाण मारा। श्रीकृष्ण ने उसे स्वर्ग प्रदान किया। श्रीकृष्ण के चरण चिन्हों का अनुसरण करते हुए दारुक वहां पहुंच गये। उसके देखते-देखते श्रीकृष्ण को लेकर गरुड चिह्न वाला रथ उड़ गया। उन्होंने दारुक को कहा कि तुम द्वारका जाकर शेष यादवों से कहो कि वे द्वारका त्याग कर अन्यत्र चले जावें, क्योंकि मेरी त्यागी हई द्वारका को समुद्र अपने गर्भ में छिपा लेगा। इसके पश्चात् श्रीकृष्ण तिरोधान हो गये।
अर्जुन शेष यादवों, स्त्रियों और अनिरुद्ध पुत्र वज्र को लेकर हस्तिनापुर चल दिया। द्वारका सूनी हो गयी। समुद्र में भयंफर तूफान आया और द्वारका जलमग्न हो गयी।
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