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जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य कौरव-पांडवों के युद्ध महाभारत में श्रीकृष्ण ने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभायी और स्वयं शस्त्र नहीं उठाया।188 प्रायः जैन ग्रंथों में महाभारत युद्ध का वर्णन नहीं मिलता।187 कतिपय ग्रन्थकारों ने श्रीकृष्ण-जरासंध युद्ध को ही महाभारत मान लिया है ।188 कहीं कौरव व पांडव युद्ध को जरासंध यद्ध के पूर्व की घटना के रूप में भी वणित किया गया है।189 और, उल्लेख किया गया है कि जरासंध दुर्योधन के पक्ष में सम्मिलित था। कौरवपांडव युद्ध और श्रीकृष्ण जरासंध युद्ध को एक मानना तर्कसंगत नहीं है । दोनों में रण-स्थल (क्रमशः कुरुक्षेत्र और सेनपल्लि) ही भिन्न-भिन्न थे। पूज्यपाद देवेंद्र मुनिजी शास्त्री की मान्यता है, "हमारी अपनी दृष्टि से भी महाभारत और जरासंध का युद्ध पृथक्-पृथक् हैं"।190
महाभारत-प्रसंग वणित न होने के कारण जैन ग्रन्थों में गीता के उपदेश का प्रकरण भी नहीं मिलता। शिशुपाल-वध
कौशल नरेश भेषज की रानी मद्री थी। इसी राजदंपति का पुत्र था शिशपाल ;191 जिसके जन्म से ही तीन नेत्र थे और इस अद्भुतता के कारण माता-पिता चिंतित और उदविग्न रहा करते थे। एक निमित्तज्ञ से उन्हें ज्ञात हुआ कि जिस व्यक्ति के गोद में लेने से बालक का तृतीय नेत्र लुप्त हो जायगा, यह उसी के हाथों मारा जायगा।192 त्रिनेत्र पुत्र के साथ राजा रानी शरावती में श्रीकृष्ण से भेंट करने आये तो श्रीकृष्ण ने बालक को गोद में उठाया और उसका अतिरिक्त नेत्र बंद हो गया। भावी अनिष्ट के निश्चय से भयभीत, काँपते हुए पति-पत्नी श्रीकृष्ण से पुत्र के प्राणों की भिक्षा मांगने लगे। मद्री को आश्वस्त करते हुए श्रीकृष्ण ने कहा कि जब तक यह
१८६. पांडव चरित्र : देवप्रभसूरि, सर्ग १२, पृ० ३८ । १८७. (क) चउपन्नमहापुरिस-चरियं (ख) त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र
(ग) भवभावना आदि १८८. (क) हरिवंशपुराण : आचार्य जिनसेन । (ख) पांडवपुराण : आचार्य शुभचंद्र । १८६. (क) पांडवचरित्र : देवप्रभसूरि ।
(ख) महाभारत के अनुसार जरासंध युद्ध महाभारत के पूर्व की घटना है। १६०. भगवान अरिष्टनेमि और कर्मयोगी श्रीकृष्ण : एक अनुशीलन-देवेंद्र मुनि जी
शास्त्री। १६१. उत्तरपुराण ७१/३४२ पृ० ३६८। १६२ उत्तरपुराण ७१/३४३-३४४
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