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________________ प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत में कृष्ण कथा १७७ श्रीकृष्ण के उद्बोधन से कर्ण को अपनी भूल अनुभव हुई कि उसने दुर्योधन से मैत्री की, किंतु जब सभी सूतपुत्र कहकर उसका अपमान करते थे तब दुर्योधन ने ही राज्य देकर उसकी गरिमा बढ़ाई थी । कर्ण ने कहा कि मैं विश्वासघात नहीं करूँगा, किंतु अर्जुन को छोड़कर किसी पांडव को नहीं मारूँगा। युद्ध में अर्जुन मरेगा और मैं जीवित रहूँगा, अथवा मैं मरूँगा और अर्जुन जीवित रहेगा। माता कुन्ती के तो पांचों पुत्र जीवित रहेंगे। श्रीकृष्ण पांडु राजा से मिलकर द्वारका लौट आये।185 वृत्तांत सुनकर पांडवों का उत्साह बढ़ा और वे युद्ध की तैयारी करने लगे। दुर्योधन ने कहा कि मैं आपके पास अर्जुन से पहले पहुंचा हूं। सज्जनों का नियम है कि जो पहले पहुंचे उनका पक्ष लिया जाय। मेरी बिनती है कि महाभारत युद्ध में आपका सहयोग मुझे मिले। नीतिज्ञ श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम पहले आये हो अतः तुम्हारी सहायता भी मुझे करनी चाहिये, किंतु अर्जुन मुझे प्रथम दिखाई दिया अतः वह भी मेरी सहायता का पात्र है । मेरी सहायता दो प्रकार से संभव है। एक पक्ष में मेरी नारायणी सेना रहेगी, जो उस पक्ष की ओर से लड़ेगी और दूसरी ओर मैं स्वयं रहूंगा, किंतु शस्त्रहीन अवस्था में रहंगा। इन दो विकल्पों में से किसी एक का चुनाव पहले अर्जुन को करने दिया जायेगा, क्योंकि वह तुम से छोटा है। ___ अर्जुन ने नारायणी सेना के स्थान पर निहत्थे श्रीकृष्ण को अपने पक्ष हेतु चुना । स्पष्ट है कि नारायणी सेना की शक्ति दुर्योधन के पक्ष को प्राप्त हो गयी। वह यह सोचकर भी प्रसन्न था कि श्रीकृष्ण पांडवों की ओर रहेंगे अवश्य किंतु वे युद्ध से विमुख रहेंगे। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से पूछा कि मैं शस्त्र-धारण न करूंगा, और युद्ध से विमुख रहूंगा यह जानकर भी तुमने मुझे क्यों चुन लिया ? अर्जुन ने उत्तर दिया कि मैं अकेला ही युद्ध में यशस्वी बनना चाहता हूं। अत: आप मेरे सारथी बनिए । श्रीकृष्ण ने अर्जुन की यह इच्छा पूर्ण की। -देखें-महाभारत, उद्योगपर्व-३६-३८ । १८४. महाभारत के अनुसार कुंती स्वयं ही कर्ण को यह समझाने के लिए जाती है कि वह उसका पुत्र है। १८५. जैन ग्रंथों के अनुसार महाभारत के पूर्व पांडु राजा का देहावसान नहीं हआ। महाभारत के समय वे उपस्थित थे। महाभारत के अनुसार तथ्य इसके विपरीत हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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