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________________ १७६ जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य जायगी।181 पांडव मेरे परामर्श पर इस अल्प-प्राप्ति पर भी संतोष करेंगे, अन्यथा विनाशकारी महायुद्ध अवश्यंभावी है। दुर्योधन ने हठपूर्वक श्रीकृष्ण का प्रस्ताव ठुकरा दिया और पांडवों के साथ श्रीकृष्ण को भी शक्ति परीक्षण के लिए चुनौती दी। यही नहीं, वह कर्ण के सहयोग से श्रीकृष्ण को बंदी भी बनाना चाहता था। ज्ञान होने पर श्रीकृष्ण ने कहा कि क्या कभी शृगाल ने भी सिंह को बाँधा है? तुम लोग दुरात्मा हो-उपकारक का भी अपकार करना चाहते हो।182 भीष्म पितामह का प्रयत्न ___ श्रीकृष्ण का यह रोष भीष्म पितामह को कौरवों के लिए विनाशकारी लगा। उन्होंने स्नेहपूर्वक श्रीकृष्ण से कहा कि बिजली के उत्ताप से अप्रभावित रहकर मेघ सदा शीतल जल ही बरसाते हैं। आप भी दुर्योधन के व्यवहार से कूपित न होना। यदि यह युद्ध हो ही तो मेरी इच्छा है कि आप इस युद्ध में भाग न लें। श्रीकृष्ण ने कहा कि पांडव मेरे आश्रित हैं। मेरे संरक्षण में ही वे युद्ध करेंगे। किंतु, आपका आदेश भी मेरे लिए शिरोधार्य है। अतः मैं वचन देता हूं कि मैं शस्त्र ग्रहण नहीं करूंगा। कर्ण को सन्मार्ग बोध श्रीकृष्ण ने कर्ण से कहा कि तुम संसार के परम वीर और शक्तिशाली हो, गुणशील हो, पर दुरात्मा दुर्योधन के साथ तुम्हारा मेल असंगत है, तम्हें तोपराक्रमी पांडवों के साथ रहना चाहिए। एक रहस्य का उदघाटन करते आए श्रीकृष्ण ने कहा-सुनो कर्ण, तुम सूत-पुत्र नहीं, कुन्ती के पुत्र हो। राधा ने तुम्हारा मात्र लालन-पालन किया है, इस नाते तुम "राधेय" कहलाते हो स्वयं कंती ने मुझे यह सब बताया है।184 यदि तुम पांडवों के संग रहो तो ज्येष्ठ भ्राता होने के नाते तुम्हारा अधिकार भी कुछ अधिक ही रहेगा। १८१. पांडव चरित्र : देवप्रभसूरि-पृ० ३४६ । १८२. वही -पृ० ३४७-४८ । १८३. (क) पांडव चरित्र : देवप्रभसूरि : पृ० ३४८ ।। (ख) महाभारत में यह प्रसंग अन्य प्रकार से वर्णित है __ श्रीकृष्ण अपने कक्ष में शयन किए हुए थे तभी उनकी सहायता की याचना के साथ दुर्योधन और अर्जुन दोनों पहुंचे। दुर्योधन श्रीकृष्ण के सिरहाने की ओर रखे एक रिक्त आसन पर बैठकर उनके जागने की प्रतीक्षा करने लगा। तभी अर्जुन आया और वह श्रीकृष्ण के पांवों की ओर बैठ गये। जागने पर श्रीकृष्ण को पहले अर्जुन दृष्टिगत हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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