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जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य जंघा पर बैठने को कहा । बलशाली नृपति और कुल के गुरुजन भी मौन हो देखते रहे । किसी ने इस अनाचार का विरोध नहीं किया। भीम ने प्रतिज्ञा की-मैं दुःशासन की इन बाहों को उखाड़कर और दुर्योधन की जंघा चीरकर ही दम लूंगा।
पराजित पांडवों को १२ वर्ष वनवास और तेरहवें वर्ष में अज्ञातवास स्वीकार करना पड़ा। इस अवधि में दुर्योधन पांडवों को नष्ट करने के कुचक्र करता रहा। अवधि पूर्ण हई और पांडवजन विराटनगर में प्रकट हुए। श्रीकृष्ण, कुन्ती, द्रौपदी सहित पांडवों को द्वारका ले आये।176 और, कौरवों के अन्याय अत्याचार से वे क्ष ब्ध हो उठे। दुर्योधन को श्रीकृष्ण का सन्देश
नीतिज्ञ श्रीकृष्ण ने द्रुपद के पुरोहित के साथ दुर्योधन को सन्देश भेजा। द्रोणाचार्य, भीष्म, कृपाचार्य अश्वत्थामा, शल्य, जयद्रथ, कृतवर्मा, भगदत्त, कर्ण, विकर्ण, सुशर्मा, शकुनि, भूरिश्रवा, चेदिराज, दुःशासन आदि कौरव राजसभा में उपस्थित थे। तभी श्रीकृष्ण का संदेश पहुँचा। १३ वर्ष वनवास और अज्ञातवास भोग कर ही पांडव अब प्रकट हए हैं और विराट राजकुमारी उत्तरा से उन्होंने अभिमन्यु का परिणय भी संपन्न किया है। वे कौरवों से स्नेह रखते हैं। अब पांडवों को स्वच्छ मन से हस्तिनापुर बुलाएं। भाइयों के मध्य संपत्ति के बंटवारे का मनमुटाव अच्छा नहीं होता। तुमने नहीं बलाया, तो भी यधिष्ठिर को अन्य भाई,यहाँ लायेंगे। सम्भव है यद्ध हो और इन्द्रप्रस्थ भी तुम्हारा न रहे। तब तुम्हें वन-वन भटकना पड़ सकता है। पांडवों को निर्बल समझने में भूल मत करना । जहाँ धर्म है वहां विजय है
और जहाँ धर्म है वहीं मैं भी हूँ। विवेक के साथ विचार कर लो जिससे बाद में पछतावा न रहे। दुर्योधन तो इस संदेश से भड़क उठा। कोपाभिभूत हो कहने लगा कि युद्ध में पांडव तो क्या श्रीकृष्ण भी हम से जीत नहीं सकते। मैं उनकी कीर्ति ध्वस्त कर दूंगा। जा, अपने कृष्ण से कहना कि कुरुक्षेत्र की समर भूमि में हमारे समक्ष अपने बल का प्रदर्शन करें। दूत ने श्रीकृष्ण को अवगत कराया कि उनकी मैत्री भावना से अप्रभावित अहंकारी दुर्योधन
१७६. महाभारत के अनुसार केवल पांडव और द्रौपदी ही वनवास में गये थे, माता
कुंती नहीं, जैन ग्रंथों के अनुसार वह भी गयी थी। १७७. महाभारत के अनुसार श्रीकृष्ण के निर्देश पर राजा द्रुपद ने अपने पुरोहित को
भेजा। देखें-महाभारत, उद्योगपर्व अ० २० वां ।
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