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जैन - परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य
फिर पहुँचा और देवकी को आश्चर्य हुआ, क्योंकि वह जान रही थी कि वे ही मुनि पुनः आये, जबकि इस हेतु मुनि एक घर में दुबारा नहीं जाते । कुछ ही पलों में वैसा युग्म और पहुँचा । देवकी को भ्रमित देख कर अबकी बार मुनियों ने स्पष्ट किया कि वे एक से लगने वाले ६ मुनि हैं जो परस्पर भाई हैं 1170 छ भाइयों के तथ्य से देवकी के मन में इन मुनियों के प्रति अगाध ममता जागृत हो गयी । उसके भी ६ पुत्र कंस के हाथों मारे गये थे (देवकी ऐसा ही जानती थी) । उसे अतिमुक्त मुनि का पूर्वकथन स्मरण हो आया कि देवकी तेरे आठ पुत्र होंगे और सभी जीवित रहेंगे । वह उलझन में पड़ गयी कि संख्या ८ रही, न ही सभी जीवित रहे । मुनिवाणी असत्य कैसे हो सकती है ? भगवान अरिष्टनेमि ने समाधान किया के तेरे सभी पुत्र जीवित हैं । वे मुनि तेरे ही पुत्र हैं और भगवान ने सुलसा प्रसंग का वर्णन कर दिया । 171
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उसके सातों पुत्र जीवित हैं - इस तथ्य से हर्ष के बावजूद देवकी के मन में यह तीव्र असंतोष व्याप्त हो गया कि उसका वात्सल्यभाव तो अतृप्त ही रह गया । वह किसी भी पुत्र की शैशव लीला का आनंद नहीं उठा सकी । भगवान ने देवकी के पूर्वभव के एक प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि तुमने अपनी सपत्नी के ७ रत्न चुरा लिये थे और जब वह बहुत रोयी तो तुमने उसे एक रत्न लौटा दिया था । अतः इस भव में तुम्हारे ७ रत्न छिन गये और एक फिर से मिल गया । देवकी ने अपने अतृप्त वात्सल्य के दुःख की चर्चा करते हुए हुए श्रीकृष्ण से कहा कि मैं एक भी पुत्र का लालन-पालन नहीं कर सकी । अतिमुक्त मुनि की घोषणा भी ८ पुत्रों की थी, जबकि तुम ७ ही सहोदर हो । श्रीकृष्ण ने हरिनैगमैषी | देव की आराधना की । देव ने साक्षात होकर कहा कि देवकी को दवाँ पुत्र होगा, पर वह यौवन में ही प्रव्रज्या ग्रहण कर लेगा 1172
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देवकी की मनोकामना पूर्ण हो गयी । आठवें पुत्र का नाम गजसुकुमाल रखा गया । बड़ा होने हर उसका विवाह द्रुम राजा की पुत्री प्रभावती के साथ कराया गया । श्रीकृष्ण ने उसका विवाह सोम शर्मा की ब्राह्मण कन्या सोमा के साथ भी करवाया । भगवान अरिष्टनेमि के समवसरण में तुरंत ही गजसुकुमाल ने दीक्षा ग्रहण कर ली और वह श्मशान में जाकर कायोत्सर्ग में लीन हो गया । उसे ध्यानलीन देख सोमशर्मा क्रुद्ध हो गया कि इसे
१७१ . वही
१७०. अन्तगडसूत्र १७२. (क) ज्ञाताधर्मकथा अ० १६. १३२. पृ० ४८-४९ (ख) त्रिषष्टि ८ /१०/८९-९२
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