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________________ १७० जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य श्रीकृष्ण ने पांडवों से पूछा कि युद्ध मैं करूँगा या तुम ? पांडवों ने कहा हम ही युद्ध करेंगे । आप देखिये । आज या तो हम हैं, या राजा पद्मनाभ। श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम यह कहते हो कि राजा हम हैं, पद्मनाभ नहीं तो तुम्हारी यह गति न होती। मैं राजा हँ, पद्मनाभ नहीं-यह प्रतिज्ञा कर मैं युद्ध करता हूँ, तुम देखो।157 __यह कह कर रथारूढ़ श्रीकृष्ण पद्मनाभ के समक्ष आये ।158 उन्होंने पांचजन्य शंख फूंका तो शत्रुसैन्य का तृतीय भाग नष्ट हो गया । शारंग धनुष के टंकार से अन्य तृतीयांश छिन्न-भिन्न हो गया। आतंकित पद्मनाभ नगर में घुस गया और द्वार बंद करवा दिये। श्रीकृष्ण वैक्रियलब्धि से विशाल नृसिह रूप में विकूवित हए और उन्होंने घोर गर्जन सहित पथ्वी पर पाद प्रहार किया। दुर्ग की प्राचीरें ध्वस्त हो गयीं। नगर में त्राहि-त्राहि मच गयी।159 भयातुर पदमनाभ स्नान कर गीले वस्त्रों में नारियों को साथ लेकर द्रौपदी सहित श्रीकृष्ण के पास आया और क्षमा याचना पूर्वक द्रौपदी को लौटा दिया ।160 उस समय धातकी खण्ड में मुनिसुव्रत का समवसरण चल रहा था जिसमें कपिल वासुदेव भी उपस्थित था। पांचजन्य की ध्वनि से जब वह चौंक उठा तो11 मुनिराज ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा कि यह भरत के वासुदेव श्रीकृष्ण की शंखध्वनि है और द्रौपदी-अपहरण का वृत्तांत कह सुनाया। कपिल श्रीकृष्ण से भेट करने आतुर हो उठे, किंतु दो वासुदेवों का मिलन संभव नहीं है। वे रथारूढ हो समद्र तट पर आये और दूर से शंखध्वनि की। उत्तर में श्रीकृष्ण ने पांचजन्य आस्फुरित किया। दोनों महान शंखध्वनियों का मिलन हुआ।18 तदनंतर कपिल वासुदेव ने पद्मनाभ को १५७. त्रिषष्टि : ८/१०/५१ १५८. जैन ग्रंथों में यह भी चर्चा है कि पहले पांडवों ने युद्ध किया पर पद्मनाभ के पर क्रम के समक्ष वे टिक न पाये तब पांडवों के अनुरोध पर श्रीकृष्ण ने युद्धारंभ किया।—जैन श्रीकृष्ण कथा : मधुकर मुनि पृ० २६३. १५६. त्रिषष्टिशलाकापुरुष : ८/१०/४६-५८ ।। १६०. (क) ज्ञाताधर्मकथा अ० १६ (ख) त्रिषष्टिशलाका : ८/२०/६०-६३ (ग) पांडवचरित्र सर्ग १७ पृ० ५३७-५४६ । (घ) हरिवंशपुराण ५४/५२/५१. १६१. (क) ज्ञाताधर्मकथा अ० १६ (ख) त्रिषष्टि : ८/१०/६५-६६ १६२ वही ८/१०/६८-७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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