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प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत में कृष्ण कथा
१६३ जरासंध की ओर से युद्ध करने वाले राजाओं की क्षमा याचना पर श्रीकृष्ण ने उन्हें अभय दान किया, जरासंध के पुत्रों का भी स्वागत किया। उसके एक पुत्र सहदेव को मगध राज्य के चतुर्थांश का स्वामी बनाया। समुद्रविजय सुत महानेमि को शौर्यपुर का, हिरण्याभपुत्र रुक्मनाभ को कौशल का और उग्रसेन पुत्र धर को मथुरा का राज्य सौंपा गया। शत्रुसंहार असंभव हो जाने पर प्रतिज्ञानुसार जीवयशा ने अग्निप्रवेश कर लिया ।138 यादवों ने भव्य विजयोत्सव मनाया और सेनपल्लि का नामकरण "आनंदपुर" के रूप में किया गया।137 श्रीकृष्ण विजयी होकर द्वारका पहुंचे। यहां पर श्रीकृष्ण का अर्धचक्रेश्वर के रूप में अभिषेक किया गया। बाणासुर वध :
बाणासुर श्रीनिवासपुर का खेचरपति था जिसकी अनिंद्य-सुंदरी कन्या उषा थी। उसकी आराधना से प्रसन्न हो गौरीविद्या ने उसे बताया
अपना प्रयोजन स्पष्ट किया, और कहा कि तूने क्षत्रिय राजाओं को बंदी बनाया है और अब उनकी महादेव के आगे बलि देना चाहता है । इसी कारण हम तेरा वध करने आए हैं । तू क्षत्रिय होकर क्षत्रियों का विनाश करना चाहता है। और, हम कष्टित जनों कार वरण करते हैं । या तो बंदी नरेशों को मुक्त कर दे या संघर्ष के लिए तत्पर हो जा। उसने प्रथम शर्त स्वीकार न की। तब श्रीकृष्ण ने उससे विकल्प मांगा कि हम तीनों में से किसके साथ युद्ध करना चाहता है ? जरासंध ने भीमसेन को चुना। दोनों के मध्य मल्लयुद्ध आरंभ हुआ। दोनों ने अपने-अपने अनेक कौशल दिखाये। १४ दिवस से युद्ध अनिणित अवस्था में अविरल रूप से चलता रहा। चौदहवें दिवस जरासंध थक कर शिथिल हो गया था। श्रीकृष्ण ने भीम को प्रेरित किया कि थकित शत्रु का सुगमता से वध किया जा सकता है। भीम ने अपनी मुजाओं पर जरासंध को उठाकर चारों ओर घुमा दिया और उसको चक्कर लगाकर पृथ्वी पर दे मारा । घुटने के प्रहार से उसकी पीठ की हड्डी तोड़ दी। उसे पृथ्वी पर खूब रगडा और अंततः उसकी टांगे पकड़कर चीर डाला। इस प्रकार जरासंध यमलोकगामी हो गया ।
श्रीकृष्ण ने बंदी राजाओं को मुक्त किया और जरासंध के पुत्र सहदेव को राज्यारूढ कर इंद्रप्रस्थ लौट गए।
देखें-महाभारत सभापर्व अ० १६ से २२ तक । १३५. (क) : त्रिषष्टि ८/७/४५३-४५७ (ख) हरिवंशपुराण : ५२/८३-८४ पृ० ६०२ १३६. (क) त्रिषष्टि : ८/८ १३७. (क) वही : ८/८/२८
(ख) हरिवंशपुराण : ५३/४१-४२ पृ० ६०६
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