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प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत में कृष्ण कथा
१६१ प्रतिशोध की ज्वाला में जीवयशा फंक उठी कि, मेरे पति का हत्यारा अब तक जीवित कैसे है ? जरासंध ने पुत्री को शांत करते हुए तुरन्त विशाल सेनासहित प्रयाण किया। नारद ने श्रीकृष्ण को युद्ध की पूर्व सूचना दे दी और उन्होंने अरिष्टनेमि से युद्ध का परिणाम जानना चाहा। अरिष्टनेमि ने मुस्कुरा कर "ओम" का उच्चारण कर दिया, जो यूद्धार्थ उनकी सहमति भी थी और श्रीकृष्ण-विजय का पूर्व संकेत भी।139
युद्धोत्साहित श्रीकृष्ण सैन्य संगठन करने लगे।130 प्रयाण कर मथुरा से ४५ योजन दूर सेनपल्ली में शिविर स्थापित किया गया।130A यहीं कुछ विद्याधरों ने एकत्रित होकर श्रीकृष्ण से सहयोग का प्रस्ताव किया और कहा-वसुदेव, प्रद्युम्न, शांब आदि को हमारे साथ जरासंध के सामने भेज दिया जाये । हम उसके खेचर विद्याधरों को रणभूमि तक पहुंचने से रोककर माया के प्रभाव से युद्ध की रक्षा कर लेंगे। ऐसा किया भी गया । जरासंध की सेना ने यादव शिविर से ४ योजन दूर अपना शिविर लगाया। श्रीकृष्ण की शक्ति से इस सेना में बड़ा आतंक था। मंत्री हंसक ने जरासंध से कहा कि आक्रमण के पूर्व शत्र का बलाबल हमें आंकना चाहिए क्योंकि कृष्ण पक्ष बड़ा सशक्त है । जरासंध ने मंत्री को फटकार दिया। कहा कि मैं यादवों का सर्वनाश कर दूंगा।
___ जरासंध ने एक हजार आरे वाला चक्रव्यूह रचा, जिसके केंद्र में वह स्वयं अपने पुत्रों व ५००० राजाओं सहित रहा। प्रत्येक आरे में १०० हाथी, २०० रथ, ५०० अश्व और १६००० सैनिकों सहित एक-एक राजा और चक्र की परिधि में ६२५० राजाओं को नियुक्त किया गया । पृष्ठभाग में गांधार व सैंधवसेना, दक्षिण में १०० कौरव भी नियुक्त किये गये। इसके आगे शकट व्यूह रचा गया । यादवों ने गरुड व्यूह रचा। अरिष्टनेमी युद्ध में उनके साथ रहे । शकेन्द्र ने अपना विशाल रथ भी सारथी मातलि के साथ भेजा। १२६. पांडवपुराण-१९/१२-१४ पृ० ३६ १३०. त्रिषष्टि : ८/७/१६६. १३०अ. श्वेतांम्बर परंपरा के जैन ग्रन्थों के अनुसार अरिष्टनेमि द्वारा यह स्वीकृति
इस कारण संभव है कि उस समय वे ३ ज्ञान के धारक थे और गृहस्थाश्रम में थे । वे जानते थे कि प्रतिवासुदेव के साथ वासुदेव का युद्ध भी और उसमें वासुदेव की विजय भी सर्वथा सुनिश्चित रहती है।
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