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जैन - परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य
मांगा पुरस्कार दिया जाएगा । प्रद्युम्न ने हाथी को नियंत्रित कर लिया । भोजन में कठिनाई बताकर राजकुमारी को पुरस्कार में मांग लिया | क्रुद्ध होकर राजा ने इन लोगों को बाहर निकाल दिया । विद्याबल से प्रद्युम्न नगर के बाहर भव्य महल बनवाया । एक रात्रि को प्रद्युम्न अपने वास्तविक रूप में प्रज्ञप्ति विद्या के बल से वैदर्भी के कक्ष में पहुँच गया । वैदर्भी की सहमति से दोनों का गांधर्व विवाह हो गया । अपना नाम गोपनीय रखने का निर्देश देकर प्रद्युम्न चला गया । सौभाग्य और परिणय सूचक चिन्हों को देख सबने अनेक प्रश्न किये, पर वैदर्भी मूक बनी रही । कुपित होकर राजा ने किन्नर चांडाल को बुलाकर राजकुमारी को उन्हें दे दिया । नगर बाहर के महल में जब ये पहुँचे तो बंदीजन प्रशस्तिगान करने आये और सारा रहस्य खुला कि किन्नर और चांडाल तो प्रद्युम्न-सांब हैं । राजा ने इन्हें सादर अपने महल में बुलवाया और वैदर्भी प्रद्युम्न परिणय संपन्न कराया । 127
जरासंध युद्ध -
प्रवासी व्यापारियों से राजगृह के जीवयशा ने सुना कि समुद्र तट पर एक संपन्न नगरी द्वारका है जहाँ वसुदेव पुत्र श्रीकृष्ण का शासन है | 128
१२७. ( क ) त्रिषष्टि : ८ /७/३८/८६
(ख) प्रद्युम्नचरित्रम् -- महासेनाचार्य सर्ग ८, ६. पृ० ८६-१७४
(ग) प्रद्युम्नचरित्र - रत्नचंद गणि
(घ) वसुदेवहिण्डी - पृ० १८ से १०० में प्रस्तुत कथा अन्य रूप से आयी है । विस्तारभय से उसे यहां नहीं लिखा गया है ।
१२८. उत्तरपुराणानुसार जलमार्ग से यात्रा करते हुए मगध के कुछ व्यापारी भूल से द्वारका पहुंच गये और वहां के वैभव से चकित रह गये । उन्होंने वहां से कुछ रत्न खरीदे और राजगृह आकर ये रत्न उन्होंने जरासंध को भेंट किए । अमूल्य रत्न देखकर जरासंध ने पूछा कि ये रत्न कहाँ से लाए गये हैं, तो व्यापारियों ने द्वारावती नगरी और श्रीकृष्ण का वर्णन किया ।
देखें—७१/४२-६४ पृ० ३६८-३७६
हरिवंशपुराण के अनुसार जरासंध राजा के पास अमूल्य मणिराशियों के
विक्रयार्थ एक वणिक पहुचा । ५० /१-४
पांडवपुराण (शुभचन्द्राचार्य द्वारा रचित ) के अनुसार एक विद्वान ने जरासंघ को रत्न अर्पित किए और उनसे ज्ञात हुआ कि श्रीकृष्ण यादवकुल सहित जीवित हैं | देखें - १६ / ८ / ११ पृ० ३६
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