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________________ प्राकृत अपभ्रंश, संस्कृत में कृष्ण कथा १५६ स्फुरित हुआ और उसी समय नारद ने श्रीकृष्ण को बताया कि यह तुम्हारा पुत्र प्रद्युम्न ही है जिसने सिद्ध कर दिया कि पुत्र पिता से बढकर है। 125 शाम्ब प्रसंग : ईर्ष्यावश सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से कहा- मुझे प्रद्युम्न सा ओजस्वी पुत्र चाहिए। श्रीकृष्ण ने अष्टमभक्त युक्त पौषधवत ग्रहण किया और हरिनैगमेषी ने प्रकट होकर एक हार देते हुए कहा कि जिस स्त्री को यह हार पहनाकर आप भोग-वासना सेवन करेंगे उसे प्रद्युम्न सा पुत्र होगा। जब श्रीकृष्ण ने सत्यभामा को निमंत्रित किया तो प्रद्युम्न प्रज्ञप्ति विद्या से सारा रहस्य जान गये। जांबवती को सारी बात बताकर उसे सत्यभामा का रूप दे दिया और श्रीकृष्ण के पास भेज दिया। वह धन्य हो गयी। प्रसन्न और तुष्ट मन से वह लौट आयी। तभी सत्यभामा पहुँची। श्रीकृष्ण आश्चर्य में पड़ गये। सोचा सत्यभामा कामोत्सुक हो पूनः आयी है। उन्होंने पुनः क्रोडा को। तभी प्रद्युम्न ने भेरी बजा दी। सत्यभामा का हृदय भय-कंपित हो गया श्रीकृष्ण जान गये कि प्रद्युम्न ने सत्यभामा को छल लिया है। अब इसे कायर पुत्र होगा। इसका हृदय भय से जो भयभीत हो गया था। कालांतर में जांबवती ने पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम सांब रखा गया ।126 और, सत्यभामा के पुत्र का नाम रखा गया भीरु कुमार। वैदर्भी प्रद्युम्न परिणय : रुक्मिणी अपने पितृगृह से बिगड़े संबंधों को सुधारना चाहती थी। भाई रुक्मि की पुत्री वैदर्भी के साथ प्रद्युम्न के विवाह को अच्छा साधन समझ उसने परिणय प्रस्ताव भेजा, किंतु रुक्मि ने अनादर पूर्वक उसे अस्वीकार कर दिया। प्रद्युम्न ने माता को आश्वस्त किया की यह विवाह अवश्य होगा और माता की स्वीकृति से होगा। पूर्वभव के संबंधों के कारण प्रद्यम्न का सांब से विशेष स्नेह था। दोनों किन्नर और चाण्डाल रूप में भोजकट नगर पहँचे। रुक्मि और वैदर्भी इनकी संगीत कला से प्रभावित हुए। राजकुमारी वैदर्भी ने पूछा-तुम द्वारका से आये हो तो क्या प्रद्युम्न को भी जानते हो? इनके मुख से प्रद्युम्न की प्रशंसा सुन वैदर्भी बडी तुष्ट और प्रसन्न हुई। राजा का हाथी मतवाला होकर विनाश करने लगा। राजा ने घोषणा की जो इस हाथी को वश में कर लेगा उसे मुंह १२५. त्रिषष्टि ८/६/४८-६० १२६. उत्तरपुराण में संभव अथवा जाम्बकुमार नाम आता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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