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________________ प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत में कृष्ण कथा १५७ जन्म दिया । रुक्मिणी के पुत्र का नाम प्रद्युम्न और सत्यभामा के पुत्र का नाम भानु रखा गया।119 शिशु प्रद्युम्न को श्रीकृष्ण अंक में लिए बैठे थे कि उन्हें लगा कि रुक्मिणी बालक को उठा ले गयी। किंतु, उसे वह नहीं ले गयी थी। बालक का अपहरण कोई रुक्मिणी का रूप धारण कर ले गया था। इससे माता बड़ी दु:खी हई।120 प्रद्यम्न के पूर्वभव के शत्रु धूमकेतू ने ही रुक्मिणी का रूप धर अपहरण कर लिया था और वैताढयगिरि पर छोड़ गया कि बालक भूखप्यास से तड़प कर प्राण त्याग देगा। विद्याधर कालसंवर बालक को उठा ले गया और उसकी निस्सन्तान पत्नी कनकमाला उसे पोषित करने लगी। कालसंवर ने घोषित कर दिया कि उसकी गढगर्भा पत्नी ने पुत्र को जन्म दिया है। बालक की खोज में नारद जी ने सहायता की। उनसे सीमंधर स्वामी से पता लगाने का अनुरोध किया गया । सीमन्धर स्वामी ने बताया-- बालक मेघकट नगर में कालसंवर के घर बड़ा हो रहा है, किंतु पूर्वजन्म के कर्मवश उसे अभी सोलह वर्ष वहीं रहना होगा। मेघकूट में वे बालक को सकुशल देखकर द्वारका लौटे और श्रीकृष्ण से सारा वृत्तांत कह सुनाया। सीमंधर स्वामी ने प्रद्युम्न के पूर्वभवों का परिचय भी नारद जी को दिया।121 १६ वर्ष की आयु प्राप्त करते-करते प्रद्युम्न गुण-शील और कलाओं में ही बढे-चढे नहीं हो गये अपितु सुन्दर व आकर्षक युवक भी हो गये थे। कंचनमाला उन पर मुग्ध हो गयो । रहस्योदघाटन करते हुए—मैं तुम्हारी जननी नहीं हूँ। उसने निमंत्रण दिया-आओ मेरे साथ क्रीडा करो। प्रद्युम्न ने कालसंबर और उसके पुत्रों का भय बताकर पिड छुड़ाना चाहा कि वे मझे जीवित न छोड़ेंगे। कामांध कंचनमाला ने प्रज्ञप्ति और गौरी विद्याएं दी और कहा-इनसे तुम कभी किसी से भी पराजित न हो सकोगे। प्रद्युम्न ने दोनों विद्याओं को सिद्ध भी कर लिया और कंचनमाला के प्रस्ताव को अनुचित बताकर घर छोड़कर चल दिया। प्रतिशोधवश कंचनमाला ने अपने पति-पुत्रों को रो-रोकर कहा-प्रद्युम्न मेरा शील भंग कर गया है। पिता-पुत्र उसके पीछे भागे और घोर युद्ध हुआ। विद्याधर की पराजय हुई ११६. (क) त्रिषष्टि : ८/६/१८ (ख) हरिवंशपुराण ४२/२६-३० १२०. (क) त्रिषष्टि : ८/६/१२७-१२६ (ख) भवभावना : २६४६ १२१. वसुदेवहिण्डी के अनुसार रुक्मिणी के वहाँ कृष्ण देखने जाते हैं तभी कोई देव उसे हरण कर जाता है । देखें-वसुदेवहिण्डी १० ८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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