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जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहिय
प्रद्युम्नजन्म एवं अपहरण प्रसंग :
अतिमुक्त मुनि से रुक्मिणी ने एक प्रश्न किया, सत्यभामा भी उपस्थिति थी । मुनिराज ने उत्तर दिया कि तुम्हें श्रीकृष्ण जैसा ही पुत्र उत्पन्न होगा । 116 तदनंतर दोनों रानियों में विवाद हो गया । प्रत्येक का मानना था कि कथन उसके ही विषय में था । निर्णयार्थं वे श्रीकृष्ण के पास आयीं । दुर्योधन भी उस समय उपस्थित था; जिससे सत्यभामा ने कहा कि मुझे पुत्र हुआ तो वह तुम्हारा जामाता बनेगा । तुरन्त ही यह अधिकार रुक्मिणी अपना जताने लगी । दुर्योधन यही कह सका कि दोनों में से जिसे भी पुत्र होगा - उससे अपनी पुत्री का विवाह कर दूँगा । सत्यभामा ने एक क्रूर शर्त रख दी कि हम दोनों में से जिसका पुत्र पहले विवाह करेगा, विवाह के समय दूसरी को अपना सर मुंडवा लेना पडेगा । रुक्मिणी ने शर्त स्वीकार कर ली । 117 बलराम, श्रीकृष्ण, व दुर्योधन शर्त के साक्षी बने ।
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एक रात्रि रुक्मिणी ने स्वप्न देखा कि वह श्वेत बैल पर स्थित विमान में आरुढ है । तभी उसकी निद्रा भंग हो गयी और एक महधिक देव महाशुभ्र देवलोक से च्युत होकर उसके उदर में प्रविष्ट हुआ । श्रीकृष्ण ने कहा कि मुनिवाणी सत्य घटित होनेवाली है । 118 ज्ञात होने पर सत्यभामा ने भी एक अनदेखे स्वप्न की चर्चा श्रीकृष्ण से की, वे यथार्थ को भांप गये । संयोग से दोनों रानियों ने एक साथ ही गर्भ धारण किया । रुक्मिणी गूढगर्भा थी, उसमें बाह्य लक्षण नहीं दिखायी देते थे, पर दोनों ने एक ही दिन पुत्रों को
११५. वही - ७६
११६. त्रिषष्टि : ८ /६/११०-११
११७ (क) त्रिषष्टि : - / ६ / ११२-११७
(ख) कुछ परिवर्तन के साथ - हरिवंश में भी यही वर्णन है— देखो हरिरवंश ४३ / १६-२८
११८. उत्तरपुराण में प्रद्युम्न के पूर्वभवों के विषय में नारद जी के स्थान पर बलभद्र जी की जिज्ञासा जगती है और वे अरिष्टनेमि के गणधर वरदत्त से इस विषय पर प्रश्न करते हैं । कुछ नामों के परिवर्तन के अतिरिक्त विवरण लगभग वही है ।
धूमकेतु प्रद्युम्न का हरण श्रीकृष्ण के अंक से नहीं करता, अपितु वह अंतःपुर के सभी लोगों को मोहनिद्रा में सुलाकर अपहरण करता है । उसी प्रकार कालसंवर के स्थान पर कालसंभव और कनकमाला के स्थान पर कंचनमाला नाम का प्रयोग हुआ है ।
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