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________________ १५४ जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य साथ रुक्मिणी उद्यान में पहुँची । बलराम सहित आये श्रीकृष्ण प्रतीक्षारत थे। उन्होंने फुइबा को प्रणाम कर रुक्मिणी को रथारूढ होने का संकेत किया। धात्री की अनुमती से उसने ऐसा ही किया। रथ ने प्रस्थान किया और फुइबा व अन्य दासियां सहायतार्थ चिल्ला-चिल्ला कर कहने लगी कि, श्रीकृष्ण रुक्मिणी का हरण कर ले गये।104 रुक्मि और शिशुपाल अपनी सेनासहित पीछा करते हुए समीप आ गये तो इनकी शक्ति से परिचित रुक्मिणी अत्यन्त व्याकुल हो गयी। श्रीकृष्ण ने बाण चलाकर ताडपंक्ति को बेध दिया, चुटकी में मोड़कर अंगूठी के हीरे का चूरा कर दिया। उनके पराक्रम का परिचय पाकर रुक्मिणी आश्वस्त हो गयी। श्रीकृष्ण से बलराम ने कहा कि, तुम वध को लेकर आगे चलो, मैं शत्रओं को रोककर उनका निग्रह करता हूँ।105 भाई के आसन्न काल से रुक्मिणी व्याकुल हो गयी और उसने बलराम को बीनती की-भाई का बध न करें। श्रीकृष्ण आगे बढ़ गये और बलराम ने मसल से अरिदल का नाश कर दिया। हलधारण करने पर शेष सैन्य भी तितर-बितर हो गया। अकेला रुक्मि बच गया। बलराम ने बाणों से उसका रथ खंडित कर कवच विदीर्ण कर दिया। क्षरप्र बाण से उसकी दाढ़ी-मूंछ भी उखाड़ दी। वे बोले--मेरी अनूज-बधू का बंध होने के कारण मैं तेरा बध न करूंगा, जा, छोड़ देता हूँ 1106 लज्जित होकर रुक्मि लौटकर कुण्डिनपुर न गया, भोजकट नगर बसाकर वहीं रहने लगा।107 द्वारका पहुंचते-पहुंचते रुक्मिणी के मन में हीनत्व आने लगा। श्रीकृष्ण की अन्य रानियां अपने साथ वैभव लायी होंगी और वह खाली हाथ है। श्रीकृष्ण ने उसे “अनुरागमति' कहकर उसके संकोच को दूर कर दिया, तथापि उसे सत्यभामा के महल के पास पृथक महल में रखा और उसके साथ गांधर्व विवाह किया।108 १०४. (क) त्रिषष्टि : ८/६/३१-३६ (ख) हरिवंशपुराण : ४२/६५-७७ (ग) वसुदेवहिण्डी (घ) पद्मचरित्र सर्ग ३-४ १०५. (क) त्रिषष्टि : ८/६/४०-४८ (ख) हरिवंशपुराण : ४२/७८-८६ पृ० ५१ (ग) हरिवंशपुराण में बलराम को छोड़कर कृष्ण जाते नहीं हैं, किंतु वहीं पर रहकर युद्ध करते हैं-देखो-हरिवंशपुराण-४२/६०-७५ साथ ही शिशुपाल के वध का वर्णन किया है, पर वह त्रिषष्टि शलाका पुरुषचरित्र में नहीं है। १०६. त्रिषष्टि : ८/६/५०-५७ १०७. त्रिषष्टि : ८/६/५८ १०८. त्रिषष्टि : ८/६/६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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