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प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत में कृष्ण कथा
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नारद जी अब ऐसी अनुपम सुन्दरी के खोज में थे जिसे श्रीकृष्ण की नवरानी बनाकर सत्यभामा का गर्वभंग कर सकें । कुण्डिनपुर नरेश भीष्मक की राजकन्या रुक्मिणी त्रैलोक्यसुन्दरी थी । नारद जी के आगमन पर रुक्मिणी ने विनत हो उन्हें प्रणाम किया । ऋषि ने उसे आशीर्वाद दिया - बेटी, द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण तेरे पति होंगे। 100 जिज्ञासा तुष्ट करते हुए उन्होंने रुक्मिणी को श्रीकृष्ण के रूपगुण से सविस्तार परिचित कराया । राजकुमारी के मन में श्रीकृष्ण के प्रति अनुराग जागृत हो गया और उसने उन्हें पतिरूप में वरण करने का निश्चय कर लिया । नारद जी ने स्वयं ही रुक्मिणी का एक चित्रफलक तैयार कर श्रीकृष्ण को दिया । इस अनुपम रूपमाधुरी पर श्रीकृष्ण मुग्ध हो गये । परिणय का प्रस्ताव कुंडिनपुर भेजा गया। कुमार रुक्मि प्रस्ताव से क्षब्ध हो गया । दूत को उसने उत्तर में कहा - रुक्मिणी का हाथ मैं एक ग्वाले को नहीं दे सकता । उसका परिणय पूर्वनिश्चित वर शिशुपाल के साथ संपन्न होगा | 201
रुक्मिणी जब बालिका थी— अतिमुक्त मुनि ने भविष्यवाणी की थी कि, वह भी कृष्ण की पट्टरानी बनेगी । 102 धाय फुइबा ने इसकी चर्चा करते हुए कहा कि, कुमार रुक्मि ने ठीक नहीं किया। फुइबा रुक्मिणी की मनोकामना पूर्ण करने में सहयोगिनी बनी। एक गोपनीय पत्र में उसने श्रीकृष्ण को लिख भेजा कि माघ शुक्लाष्टमी को नागपूजा के मिस मैं रुक्मिणी को उद्यान में लाऊंगी । हे कृष्ण ! यदि रुक्मिणी का प्रयोजन हो तो वहां आ जाना । अन्यथा वह शिशुपाल की हो जायगी । 108 श्रीकृष्ण के बल पराक्रम से "परिचित रुक्मि का सशंक मन भी अशांत हो गया था । उसने शिशुपाल को शीघ्र आने का निमंत्रण भेज दिया । श्रीकृष्ण-रुक्मिणी प्रणय से अवगत शिशुपाल सेना सहित कुण्डिनपुर पहुँच गया। इधर योजनानुसार फुइबा के
(ग) हरिवंशपुराण : ४२/२४-२६
१००. ( क ) त्रिषष्टि : ८ / ६ / १०-१३ (ख) भवभावना । २६४०-४२ (ग) हरिवंशपुराण : ४२ / ३०, ४२५० ५०७
१०१. ( क ) त्रिषष्टि : ८ / ६ / १४-२१ (ख) भवभावना : २६४३-४४ (ग) हरिवंशपुराण : ४२ / ४३-४८
१०२. ( क ) त्रिषष्टि : ८ / ६ / २४ ( ख ) हरिवंशपुराण : ४२ / ४६-४६ १०३. ( क ) त्रिषष्टि : ८ / ६ / २८-३० ( ख ) हरिवंशपुराण : ४२ / ५७-६४ (ग) प्रद्युम्नचरित्र महाकाव्यम् सर्ग २, श्लोक ७३
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