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________________ प्राकृत अपभ्रंश, संस्कृत में कृष्ण कथा कंस संहार : मल्ल युद्ध आयोजन पर जब श्रीकृष्ण बलराम मथुरा पहुंचे। नगर द्वार पर दो सजे-सजाये गज-पद्मोत्तर और चंपक अगवानी के लिये खड़े किये गये थे। श्रीकृष्ण के घात के लिए ऐसा किया गया था। इससे बलराम और श्रीकृष्ण भी अनभिज्ञ न थे। पद्मोत्तर ने श्रीकृष्ण पर और चंपक ने बलराम पर आक्रमण कर दिया। मुष्टि प्रहार से श्रीकृष्ण ने पदमोत्तर गज का प्राणान्त कर दिया और उसके दोनों दाँत खींच कर निकाल लिये। चंपक हस्ति भी बलराम के हाथों मारा गया। दोनों भाई इस विजय पर बिना कोई गर्व दिखाते हुए समारोह-स्थल पर पहुंच गये ।2 अनेक राजा-महाराजा एकत्रित थे । वसूदेव के ह भ्राता (दशाह) भी उपस्थित थे। बलराम ने दूर से ही श्रीकृष्ण को सब का परिचय दिया । कंस का प्रिय मल्ल चाणूर अखाड़े में उतर कर उपस्थित समुदाय को चनौती देने लगा। कोई शक्तिशाली हो तो आये और मुझ से मल्लयुद्ध करे। सर्वत्र सन्नाटा छा गया। इस बलिष्ठ से बाहुयुद्ध करना सुगम कार्य न था। श्रीकृष्ण ताल ठोंककर आगे बढ़े। भीमकाय चाणर के विपरीत किशोर कृष्ण को खड़ा देख एक बार तो सभी ओर कोलाहल मच गया। श्रीकृष्ण ने सभी को आश्वस्त किया के मैं इस मल्ल को पराजित कर दूंगा। कंस को विश्वास हो गया कि यही मेरा शत्रु है और उसने अन्य मल्ल मुष्टिक को भी अखाड़े में उतरने का आदेश दे दिया। यह अधर्म युद्ध था। अकेले कृष्ण के दो प्रतिद्वंद्वी थे। कंस तो किसी भी प्रकार शत्र-संहार चाहता था । अब बलराम भी अखाड़े में उतर गये। श्रीकृष्ण चाणर से और बलराम मुष्टिक से भिड़ गये । मल्लयुद्ध के भीषण घात-प्रतिघातों के ७१. श्रीमदभागवत में एक ही गज "कुवलयापीड" की चर्चा आती है जिसे रंगशाला (मल्लयुद्धस्थल) के बाहर द्वार पर खड़ा किया गया था। श्रीकृष्ण ने महावत से कहा कि हमें प्रवेश का मार्ग दे अन्यथा तुझे हम हाथी सहित मार देंगे। चिढ़कर महावत ने हाथी को आगे बढाया। श्रीकृष्ण ने कुछ समय तो पूंछ पकड़कर हाथी को घुमाया, फिर सूंड पकड़कर धरती पर पछाड़ दिया, उसका दांत उखाड लिया और उसी के प्रहारों से महावत और हाथी दोनों की जीवनलीला समाप्त कर दी। ७२. भवभावना गा० २४३१-३२ - ७३. (क) हरिवंशपुराण-३६/३६ पृ० ४६४; (ख) त्रिषष्टि : ८/५/२७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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