________________
प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत में कृष्ण कथा
१४५
की रक्षा हेतु अपने सभी भाइयों और पुत्रों अक्रूर आदि को बुलाया था । कंस ने यदुवंशियों का खूब स्वागत किया और उनके लिए पृथक् से एक उच्च मंच निर्मित करवाया । 84
इससे कुछ पूर्व गोकुल में एक घटना घटित हो गयी । मथुरा हेतु प्रस्थानपूर्व स्नानार्थ बलराम ने यशोदा को पानी गर्म करने को कहा । व्यस्ततावश हुए विलंब से कुपित हो बलराम ने यशोदा को ताडना देते हुए कहा- हमारी दासी होकर तुमने हमारी आज्ञा के उल्लंघन का साहस कैसे किया ?65 माता के इस अपमान से श्रीकृष्ण चंचल हो उठे । दोनों भाई यमुना-स्नान के लिए चल दिये । अधीर श्रीकृष्ण ने जब पूछा -मां को तुमने दासी क्यों कहा ?86 तो सारा वृत्तांत बताते हुए बलराम ने स्पष्ट किया कि श्रीकृष्ण भी वसुदेव-देवकी के पुत्र हैं । रहस्योद्घाटन पर कंस के प्रति श्रीकृष्ण के मन में प्रतिशोध की प्रचण्ड ज्वाला धधक उठी और उन्होंने कंस वध की प्रतिज्ञा कर ली 187
यमुना में स्नानार्थ जब ये उतरे तो पाया कि इस स्थल का यमुना जल बड़ा दीप्तिमान और आलोकित है । इस यमुनाद्रह में भयंकर कालिय नाग का निवास था । उसी के मणि- प्रकाश से जल दीप्तिमान हो उठा था | श्रीकृष्ण इस तथ्य से अपरिचित थे । इनके जलप्रवेश करते ही भयंकर नाग लपका, किंतु त्वरा के साथ श्रीकृष्ण ने उसे नाथ लिया और उसके साथ क्रीडा करते रहे। अंततः उसका मर्दन कर नष्ट ही कर दिया । कुतूहलवश एकत्रित विशाल जनसमुदाय ने श्रीकृष्ण का जय-जयकार किया। दोनों भाई सभी का साधुवाद लेकर मथुरा के लिए चल दिये 188
68
हरिवंश पुराण और उत्तर पुराण में यह प्रसंग अन्यथा रूप में है कि कंस ने गोकुलवासियों को एक विशिष्ट कमल लाने का आदेश दिया जो यमुना में असंख्य सर्पों वाले द्रह में खिला था । कंस जानता था कि श्रीकृष्ण ही कमल लेने को जायेगा और मारा जायेगा । श्रीकृष्ण ने जब जल में प्रवेश किया तो प्रचंड कालिय ने क्रुद्ध होकर आक्रमण कर दिया । श्रीकृष्ण
६४. त्रिषष्टि : ८ / ५ /२४४-२४६ ।
६५. (क) — वही - ८ / ५ / २४८ - २५१ । (ख) भवभावना – २४०३-२४०५ । ६६. ( क ) त्रिषष्टि : ८ / ५ / २५२-२५४ । (ख) भवभावना २४०६ ।
६७. (क) त्रिषष्टि: ८ / ५ / २५५-२६ । (ख) भवभावना २४८ |
६८. त्रिषष्टि : ८ / ५ / २६२-२६५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org