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________________ १४४ जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य जब एक भारी पेड़ की बाधा से रथ रुक गया तो अनाधृष्टि ने वृक्ष को उखाड़ फेंकना चाहा पर पसीना-पसीना होकर भी वह सफल न हो सका। श्रीकृष्ण ने बड़ी सुगमता से उसे समूल उखाड़ कर रास्ता बना दिया। अनाधष्टि श्रीकृष्ण की शक्ति पर आश्चर्य करने लगा और उनका प्रशंसक बन गया। स्वयंवर सभा में जब ये पहुंचे तो संयोग ऐसा हुआ कि अनाधृष्टि का मुकुट धरती पर गिर कर खंडित हो गया। उसका पैर फिसल गया था। उपस्थित राजा-महाराजा अट्टहास कर उठे और सत्यभामा भी व्यंग्य से मुस्कुराने लगी। आत्मविश्वास डिग जाने के कारण अनाधष्टि प्रत्यंचा न चढ़ा सका । पराजय की इस स्थिति से श्रीकृष्ण तड़प उठे। उन्होंने क्षणमात्र में शारंग को प्रत्यंचायुक्त कर दिया। सभास्थल हर्षध्वनि से गज उठा पर वसुदेव इस आशंका से चितित हो उठे कि इस पराक्रम से कंस ने श्रीकृष्ण को अपने शत्र रूप में पहचान लिया तो नया संकट उठ खड़ा होगा। उनके निर्देश पर श्रीकृष्ण और अनाधृष्टि तत्काल सभा त्याग कर गोकुल पहुंच गये। लोक में नंदनंदन श्रीकृष्ण "शारंगधर" के रूप से विख्यात हो गये। मल्लयुद्धोत्सव : रहस्योद्घाटन अब निश्चित हो जाने पर कंस अपने शत्रु श्रीकृष्ण को मारने की नयी-नयी चालें चलने लगा। उसने मथुरा में एक मल्लयुद्ध का आयोजन किया। श्रीकृष्ण भी बलराम के साथ पहुंचे। दूरद्रष्टा वसुदेव ने श्रीकृष्ण ६३. (क) जिनसेन कृत हरिवंशपुराण के अनुसार कृष्ण को खोजने में असफल रहकर जब कंस गोकुल से मथुरा लौटा, उसी समय मथुरा में ३ दिव्य पदार्थ प्रकट हुए-सिंहवाहिनी नागशय्या, अति तेज धनुष, और पांचजन्य शंख । ज्योतिषियों से ज्ञात हुआ कि जो मनुष्य नागशय्या पर चढ़कर इस धनुष को प्रत्यंचायुक्त कर देगा और पांचजन्य फूंक कर सस्वर कर देगा, वही निश्चय रूप से कंस का शत्रु है । तदनुसार कंस ने घोषित करवाया कि जो इस पराक्रमपूर्ण कार्य में सफल रहेगा, वह मेरा मित्र माना जाएगा और इस नाते में उसको अलभ्य इष्ट वस्तु भी भेट करूंगा। (ख) जब धनुष रक्षक असुरों व कंस के सैन्य ने श्रीकृष्ण का विरोध किया तो उन्होंने धनुष को खंड-खंड कर दिया और धनुष के टुकड़ों से ही सब को मार गिराया। श्रीमद्भागवत १०/४२/१५-२१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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