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________________ प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत में कृष्ण कथा १४३ अपने उत्पात से गायों और गोपों को आतंकित कर दिया। श्रीकृष्ण ने पूर्ण शक्ति के साथ अपना हाथ उसके मुख में डाल दिया और दम घुटने से उसका भी प्राणांत हो गया । खर और मेष की भी इसी प्रकार दुर्गति हुई। कंस को निश्चय हो गया कि श्रीकृष्ण ही उसके शत्रु हैं और वे परम बलवान एवं शूरवीर हैं।७० श्रीमद्भागवत में खर का नाम नहीं आता, किंतु धेनुकासुर प्रसंग के साथ इसकी समकक्षता स्थिर की जा सकती है जो इस प्रकार है कि तालवन मधुर फलों से लदा था और धेनुकासुर वहां प्रतिपल प्रहरी रूप में सतर्क रहा करता था। अपनी सखा मंडली सहित श्रीकृष्ण वहां पहुंचे और धेनुकासुर ने बलराम के वक्ष में लात मारी। बलराम ने उसके पिछले पैर पकड़ कर घुमा दिया और उसके प्राण पखेरू उड़ गये। इस पर धेनुक के बंधु-बांधवों का समूह एकत्रित होकर चढ़ आया और दोनों भाइयों ने उन सभी को मार कर तालवन को निरापद कर दिया। शारंग धनुष प्रकरण कंस के राजभवन में शारंग नामक एक अति प्राचीन धनुष था। उसने घोषणा करवा दी कि जो कोई इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा उसके साथ वह सत्यभामा का विवाह करवा देगा। इस बहाने कंस एक बार पुनः निश्चित कर लेना चाहता था कि श्रीकृष्ण ही उसके शत्रु हैं।62 यथासमय आयोजन किया गया। अनेक राजा-राजकुमार अपनी शक्ति का परिचय देने को एकत्र हुए। श्रीकृष्ण भी बलराम और अनाधृष्टि के साथ स्वयंवर सभा में पहुंचे। अनाधृष्टि वसुदेव-मदनवेगा का पुत्र था जो शौर्यपुर से मथुरा यात्रा में रात्रि विश्राम हेतु गोकूल रुक गया था। मार्ग से अपरिचित होने के कारण अगले दिन श्रीकृष्ण एवं बलराम को साथ लेकर उसने मथुरा प्रस्थान किया। मार्ग उबड़-खाबड़ था और उसका रथ बार-बार अटक जाता था। ५६. (क) त्रिषष्टि : ८/५/२१७-२२० । (ख) भवभावना २३७६-७७ । ६०. (क) त्रिषष्टि : ८/५/२२१ । (ख) भवभावना : २३८१ । ६१. श्रीमद्भागवत स्कंध १, अध्याय १५, श्लोक २०-४० । ६२. त्रिषष्टि : ८/५/२२३-२२४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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