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________________ १४२ जैन-परंपरा में श्रीष्कृण साहित्य अथवा मिथ्या ?53 उत्तर मिला कि मुनिवाणी रंचमात्र भी मिथ्या नहीं हो सकती। निमित्तज्ञ ने कहा कि तुम्हारा संहारक तो जन्म ले चुका है और वह आस-पास ही कहीं बड़ा हो रहा है। समस्या यह थी कि कंस अपने विनाशक को पहचाने कैसे ? निमित्तज्ञ ने राह बतायी कि कंस अपने दुर्धर्ष और बलवान बैल अरिष्ट, अश्व केशी, दुर्दान्त खर और मेष को मुक्त विचरणार्थ वन में छोड़ दें। खेल ही खेल में जो इन चारों का वध कर देवही कंस का शत्रु होगा। वही देवकी का सातवां गर्भ है ।54 निमित्त से कंस को यह भी ज्ञात हुआ कि उसका शत्रु इस युग का वासुदेव होगा और वासुदेव महाबलवान होता है। वह कालियमर्दन भी करेगा और समय आने पर वह उसका भी अंत कर देगा। निमित्तज्ञ के कथन से कंस आतंकित हो गया । वह आत्मरक्षा के लिए सक्रिय हो गया और शत्र की खोज के लिए सुझाये गये उपायों को क्रियान्वित करने लगा। प्रचण्ड बैल अरिष्ट को वृन्दावन में मुक्त विचरण हेतु छोड़ दिया गया। उसके भयंकर उत्पात से सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच गयी।56 श्रीकृष्ण ने सींगों से पकड़कर इस कर बैल को नियंत्रित कर लिया। वह पिछले पैरों से ऐसा ऊपर उठा कि अपने ही भार से उसकी ग्रीवा भंग हो गयी और वह भयानक चीत्कार के साथ मर गया। गोकुलवासी प्रसन्नता से झम उठे। वैदिक परंपरानुसार एक दैत्य बछडे (वत्स) का रूप धारण कर गो-समह में घुस आया। श्रीकृष्ण ने पिछले पैर पकड़ कर वत्सासुर को उठा लिया और उसे आकाश में तेजी से ऐसा घुमाया कि उसका प्राणांत हो गया। उत्तरपुराणानुसार अरिष्ट नामक देव बैल रूप में श्रीकृष्ण के बल की परीक्षा लेने आया। श्रीकृष्ण उसकी गर्दन मरोडने लगे, किंतु देवकी ने उसे छड़ा लिया। अरिष्ट के पश्चात् उदंड अश्व केशी को भेजा गया। उसने ५३. (क) त्रिषष्टि ८-५-२००, २०१। (ख) भवभावना २३४७ से २३५० । ५४. (क) त्रिषष्टि : ८/५/२०२-२०४। (ख) भवभावना २३५२ से २३५६ । ५५. (क) त्रिषष्टि : ८-२-२०५-२०७। (ख) भव-भावना गा० २३५७ से २३५६ । ५६. श्रीमद्भागदत में अरिष्ट के स्थान पर वत्सासुर नाम का बछड़ा उल्लिखित है। ५७. (क) त्रिषष्टि : ८/५/२०९-२१६ । (ख) भवभावना २३६८ से २३७५ । ५८. उत्तरपुराण श्लोक ४२७-२८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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