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प्राकृत अपभ्रंश, संस्कृत में कृष्ण कथा
१४१ जी पहुंच गये । कन्याओं ने वस्त्रधारण कर लिए पर ये दोनों भाई निर्लज्ज ठंठ की भांति खड़े रहे। क्षब्ध ऋषि ने शाप दिया कि जाओ इसी तरह वृक्ष योनि में जा पड़ो। इनके बहुतेरे गिडगिडाने पर नारद जी ने उद्धार की व्यवस्था बतायी कि जब कृष्णावतार होगा तब भगवान तुम्हारा उद्धार करेंगे। नंद आँगन में ये दोनों भाई ही वृक्ष बने थे अीर श्रीकृष्ण से उद्धार पाकर वे अपने मूल स्वरूप में आये थे।50
बलभद्र का गोकुल-आगमन
पुत्र-वत्सला माता-पिता का मन इन बाधाओं और उपद्रवों से विचलित रहने लगा। यह भय भी था कि ऐसे चमत्कारों से श्रीकृष्ण का वास्तविक रूप भी कंस से अधिक समय तक छिपा न रह सकेगा। अतः बालक के रक्षणार्थ वसूदेव ने बलभद्र को नंद के यहां भेज दिया। श्रीकृष्ण एवं वलराम गोकुल में नाना भांति क्रीडा करते और ग्रामवासियों को सुखमग्न रखते । बलराम श्रीकृष्ण को धनुर्विद्या एवं अन्य युद्धकौशल सिखाने लगे 51 श्रीकृष्ण आयुध संचालन में प्रवीण बने। उनके शौर्य, शक्ति और पराक्रम में अद्भुत गति से विकास होने लगा। उनकी रूपमाधुरी भी विकसित होने लगी। वे कलावंत हो गये। सभी उनसे अतिशय प्रेम करने लगे। ११ वर्षकी आयु में ही वे गोकुल-नायक बन गये। मुरली के स्वर पर गोपियां उनके पास दौड़ी आतीं । वे गोपाल थे। गायें उनसे अमित स्नेह करती थीं। श्रीकृष्ण ब्रजराज हो गये। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने ग्यारह वर्षीय गोकुलप्रवास पूर्ण किया।
कंसारि की खोज
एक दिन राजभवन में कंस ने नासिकाहीन कन्या को देख लिया और उसे मुनि की भविष्यवाणी स्मरण हो आयी। वह विचलित हो उठा। एक निमित्तज्ञ को बुलाकर उसने प्रश्न किया कि मुनिवाणी सत्य होगी ५०. श्रीमद्भागवत १०/१०/१ से ४३ । गीता प्रेस, गोरखपुर ५१. (क) त्रिषष्टि : ८/५/४६ से ५३ ।
(ख) हरिवंशपुराण-३५, ६४, पृ० ४५६ ।
(ग) भवभावना-२२१७ और २२१६ । ५२. त्रिषष्टि ८/५/१६६ ।
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