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जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य
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लगी । रक्षक देवताओं ने दोनों विद्याधरियों का प्राणांत कर दिया । इसी समय नंद घर लौट आये। आंगन में यह अस्त-व्यस्तता और विद्याचारियों का मृत शरीर देखकर किसी अनिष्ट की आशंका से आतुर हो उठे और लपक कर वे भीतर गये । श्रीकृष्ण को सकुशल पाकर वे आश्वस्त हो गये । एक सेवक ने बताया कि स्वामी, आपका पुत्र बड़ा पराक्रमी है, उसी ने इन उपद्रवी स्त्रियों का वध किया है । वैदिक परंपरानुसार कंस राक्षसी पूतना को भेजता है जो विषाक्त स्तनपान कराने लगती है और बालक कृष्ण इतनी उग्रता से स्तनपान करते हैं कि उसका देहांत हो जाता है । 27
दामोदर श्रीकृष्ण और यमलार्जुन
निश्चय कर लिया गया कि माता यशोदा बालक को अकेला नहीं छोड़ेगी। कुछ बड़ा हो जाने पर बालक श्रीकृष्ण माता की दृष्टि से छिपकर इधर-उधर खिसक जाते थे । मां बालक की कमर में रस्सी बांधकर उसका दूसरा छोर ओखली से बांध देती और निश्चित हो जाती । यह प्रतिबंध जब तक श्रीकृष्ण चाहते, तभी तक प्रभावी रहता था । स्वेच्छाधारित इस बंधन से वे जब चाहते मुक्त हो सकते थे । शूर्पक विद्याधर का पुत्र बालक कृष्ण के विरुद्ध अपनी बहनों और पिता के वध का प्रतिशोध पूरा कर लेने को व्यग्र था । यह यमला जाति के दो वृक्षों का रूप धरकर नंद के आँगन में स्थित हो गया । पुत्र को उदर से बांधकर निश्चित मां कहीं अन्यत्र चली गयी थी । बालक श्रीकृष्ण ओखली को घसीटते हुए आंगन में आ गये और वृक्षों की ओर बढ़े। दोनों वृक्ष पास-पास सटने लगे ताकि बालक को बीच में दबाकर कुचल दें । बालक के सबल प्रहार से दोनों वृक्ष ध्वस्त हो गये और इस प्रकार शूर्पक पुत्र की जीवन लीला समाप्त हो गयी । पेट पर रस्सी के बंधन के कारण श्रीकृष्ण को "दामोदर" कहा जाने लगा । 48 आचार्य जिनसेन ने यमल और अर्जुन नामक दो देवियों का होना माना है । 49 श्रीमद्भागवत में यह प्रसंग अन्यथा रूप में है । कुबेर- पुत्र नलकबर और मणिग्रीव यक्ष कन्याओं के साथ जलक्रीडा कर रहे थे कि सहसा नारद
४७. श्रीमद्भागवत १०/६/४ से १३ । ४८. ( क ) त्रिषष्टि : ८/५/१४१ ।
(ख) भवभावना गा० २२११-२२१५ । ४६. हरिवंशपुराण - ३५/४५, पृ० ४५३ ।
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