SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत में कृष्ण कथा १३ε में गो-पूजन का समारंभ हुआ । 43 मेघनील कांति संपन्न होने के कारण बालक को "श्याम" का संबोधन और " श्रीकृष्ण" नाम मिला 14 शकुनी-पूतना बाधा वसुदेव के साथ वैमनस्य के कारण प्रतिशोधार्थ विद्याधर शूर्पक ने अपनी दो कन्याओं - शकुनी और पूतना को सक्रिय किया कृष्ण-वध के प्रयोजन से दोनों गोकुल आयीं 146 दुर्योग से बालक घर में अकेला था । ये बालक को आंगन में घसीट लाईं और शकुनी उसे भारी गाड़ी के नीचे कुचलने लगी, पर विफल रही । पूतना अपने विषलिप्त स्तन का पान कराने ४३. श्रीमद्भागवत के अनुसार गोकुलवासी इंद्र के उपासक थे । वर्षा के देवता इंद्र का गवं भंग करने को श्रीकृष्ण ने इंद्र पूजा रुकवा दी और गोपूजन आरंभ करवाया । इसीसे कुपित होकर इद्र ने ७ दिन तक अविरल वर्षा की और श्रीकृष्ण ने गोवर्धन धारण कर ब्रजवासियों व गोधन का त्राण किया । दशम स्कंध, अध्याय २५ / २६ । ४४. त्रिषष्टि : ८/५/११६ । ४५. शूर्पक विद्याधर दिवस्तिलक नगर के राजा त्रिशिखर का पुत्र था । वसुदेव ने युद्ध में त्रिशिखर का मस्तक काट दिया था, अतः शूर्पक का वसुदेव से वैर था और उसकी पुत्री इसका प्रतिशोध लेना चाहती थी । ४६. ( क ) जिनसेन के अनुसार ये दोनों कंस द्वारा भेजी गयी देवियां थी । एक दिन कंस को अपने शुभाकांक्षी देव वरुण (जो निमित्तज्ञ था) से ज्ञात हुआ कि उसका संहारक समीपस्थ क्षेत्र में ही कहीं बड़ा हो रहा है तो उसने अपने शत्रु के विनाश के लक्ष्य से ३ दिन का उपवास किया, परिणामतः उसकी पूर्वजन्म में सिद्ध की गयी दो देवियां प्रकट हुयीं । कंस ने उनसे प्रच्छन्न रूप में बढ़ रहे अपने शत्रु के वध के लिए कहा। देवियां गोकुल पहुंची, उनमें से एक ने शकुनी (पक्षी) का रूप धारण कर लिया और अपनी पैनी चोंच से श्रीकृष्ण के कोमल तन को गोदने का प्रयास करने लगी, बालक कृष्ण ने उसकी चोंच को इतनी जोर से मर्दित किया कि वह चीत्कार करती हुयी भाग खड़ी हुयी। दूसरी देवी अपने स्तनों पर विष का लेपन करके आयी और बालक को स्तनपान कराने लगी । श्रीकृष्ण ने अपने मुख से स्तन को इतनी कठोरता व शक्ति के साथ दबाया कि वह असीम पीड़ा से कराहने लगी ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy