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________________ १३८ जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहिय साहित्य में यह वृत्तान्त अन्य रूप में भी प्राप्त होता है। उत्तरपुराण में इस प्रकार वर्णित है (क) वैश्य कन्या का नाम (सलसा के स्थान पर) अलका था। हरिणगमेषी देवकी पुत्रों का हरण इंद्र की प्रेरणा से करता है। (पृ० ३८४८६)। (ख) रोहिणी-पुत्र बलभद्र श्रीकृष्ण को अंक में ले जाते हैं। नंद छत्र तान कर साथ चलते हैं। बैल रूप नगरदेवता आगे चलते हैं जिसके सींगों की मणियां दीपक का काम करती हैं (पृ० ३६०-६२)। (ग) नंद इन्हें मार्ग में मिल गया। उसने कहा कि मूलदेवता की आराधिका मेरी पत्नी ने यह कन्या आपको सौंपने को भेजी है। बलभद्र ने बालक नंद को दिया और कन्या के साथ लौट आये (पृ० ३६६-४००) । (घ) नासिकाच्छेद कर कंस ने धाय द्वारा तलघर में कन्या को पोषित करवाया जो आयू पाकर सत्ता आर्या के पास दीक्षा ग्रहण करती है और विंध्याचल में तपस्या करती है। कालांतर में वह बाघ का शिकार होकर स्वर्गलाभ करती है। गिरीजन उसे विध्यवासिनी देवी रूप में पूजने लगते हैं (पृ० ४०७-४११)। वैदिक संदर्भ इससे सर्वथा भिन्न प्रकार का है ।। गोपूजन प्रारंभ अतुलित शोभाधारी श्रीकृष्ण नंदगृह में बड़े होने लगे। मथुरा में माता देवकी का ममता भरा मन पुत्र-मुख-दर्शन हेतु आकुल-व्याकुल रहने लगा । जननी का गोकुल आना-जाना संदेहजनक हो सकता था। अस्तु, दवकी गोपूजन के बहाने गोकुल आयी और उसने छक कर अपने सुत को देखा, तुष्ट हुई। प्रतिमाह यही क्रम चलता रहा और इस प्रकार इस देश ४०. उत्तरपुराण ४१. श्रीमद्भागवत १०।४।८ से १२, पृ० २३३-३४ ४२. (क) वसूदेवहिण्डी देवकी लम्भक अनुवाद, पृ० ४८३ ! (ख) त्रिषष्टिः० ८/५/११६-१२१ । (ग) भवभावना गाथा--२२०१-२२०४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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