________________
प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत में कृष्ण कथा मूसलाधार वर्षा, प्रहरी निद्रामग्न और वसुदेव बालक को लेकर चले । देवताओं ने पुष्पवर्षा की, आठ दीपक प्रज्वलित कर दिये और कृष्ण वसदेव पर छत्र तान दिया । वसदेव कारागार के मुख्य द्वार पर पहुँचे। यहीं पर कंस के पिता उग्रसेन बंदी थे। उन्होंने पूछा इस समय बालक को कहाँ ले जा रहे हो ? वसुदेव ने कहा यह कंस का शत्र है जो आपको भी कारामुक्त करेगा और शत्रु -निग्रह करेगा। इस बात को गोपनीय ही रखें । श्रीकृष्ण : गोकुल में
यमुना पार कर वसूदेव गोकूल में नंद के घर पहँचे। उन्हें नवजात शिश के साथ देखकर नंद आश्चर्यचकित रह गया। नंद-वधू यशोदा ने उसी समय एक कन्या को जन्म दिया था। वसुदेव का प्रयोजन सुगम हो गया। कन्या के स्थान पर शिशु श्रीकृष्ण को रखकर नंद ने वसुदेव को अपनी कन्या सोंप दी। जिसे साथ लेकर वे मथुरा के कारागार में लौट आए और देवकी को उन्होंने यह कन्या दे दी।38 इसी समय प्रहरीजन जाग गये। क्या हुआ क्या हुआ ? पूछते हए प्रहरियों ने पाया कि इस बार एक कन्या ने जन्म लिया है।
भोर होने पर जब कंस को ज्ञात हुआ तो आश्वस्त हो वह कहने लगा मुनिवाणी असत्य सिद्ध हुई। देवकी की आठवीं संतान तो पुत्र नहीं पुत्री है। भला यह मेरी क्या हानि कर सकेगी ? कंस ने कन्या का वध नहीं किया । नासिका छेद कर उसे देवकी को लौटा दिया ।39 जैन
३५. (क) वसुदेवहिण्डी; (ख) त्रिषष्टि : ८।५।१०५-११०; (ग) भवभावना
गाथा २१६३-६५ पृ० १४६ ।। ३६. (ख) भवभावनागाथा-२१६६-६७ । ३७. (अ) त्रिषष्टि ८।५।११३-११४ ३८. संघदासगणि और आचार्य हेमचन्द्र के क्रमशः वसुदेवहिण्डी तथा भवभावना में
वर्णन है कि कंस ने कन्या की नाक चपटी कर दी। जिनसेनकृत हरिवंशपुराण में भी इसी प्रकार का उल्लेख मिलता है। (क) वसुदेवहिण्डी
(ख) भवभावना २१६६ (ग) हरिवंशपुराण ३४।३२। पृ० ४५२ ३६. छिन्ननासां पुटां कृत्वा देवक्यास्ता समर्यपत्-त्रिषष्टि ८।५।११५.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org